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________________ ( १९१ ) नरेंद्रचंद्रदुदिवाकरेसु तिर्यग्मनुष्यामरनायकेसु । मुनिद्रविद्या धरकिन्नरेसु स्वच्छंदलीला चरितोहि मृत्यु अर्थ:-नरेंद्र, चन्द्र, सूर्य, तियेच, मनुष्य, देवता, इन्द्र, मुनिंद्र, रियाधर और किनरो मरण यह तो अपनी मरजी मुना रीला करते है। फिर पष्टिशतकमें कहा है किसोएण कदिउण कुट्टऊणे सिरचउअरच । अप्प खिरति नरए तपिहु धिद्धि कुतेहतम् ।। अर्थ --अपने प्यारेके वियोगसे जो शोक पैदा होता है ___ उसरे वास्ते छाती माया टूटते हैं ऐसे कुस्नेहीको धिकार' रिकार' विमारहै, पारण कि शोचंति स्वजनानतं नियमानान् स्वकर्ममि नेप्य माण तु शोचति नात्मान मूढ बुद्धय ॥ अर्थ - युदि वाले मनुप्प अपने पारेकी मृत्यु नो रि सार्मस हुई है उसरा शोक करते हैं परन्तु सुद एक नि खिंचा जायगा उत्तरा शाक नही परते फिर नागे पष्टिधतकमें कहते हैं कि,
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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