SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८२ ) तिसे लोहके फिग्नेकी गतिमें बहोत फेरफार होता है, लोहू जव एका एक उकलता है और गति बहोत उतावली होती है जब पहिले पुलकेसे बहोत पानी अलग होजाता है और परिनाम ऐसा आता है कि आंसू बहोत बहार आते हैं. जिस लोहूका वीर्य होता है वह लोह मुक्त पानी होकर आंसूरूपमें वहार निकल जाता है उससे आंखको वहोत नुकसान होकर तेज घट जाता है. ___ कूटनेसे अनेक गैरफायदे हैं-छानी तथा आंख लाल. सूर्ख हो जाती है, छातीमें चांदिों पड़ जाती है, खून निकल आता है, पेटों अनेक प्रकारके रोग पैदा होते है, स्वीका कमल उधा होजाता है, सूत्राशयमें विगाड़ होनेसे पिशाव बन्ध हो जाता है, छाती कूटनेसे आस पासकी नसे चगदा जाती है उससे सोजा चड़आता है, और उससे गांठ गुमड़की भी व्याधी होती है, स्त्रीके स्तनके अन्दर रोग पैदा होता है उससे दूध विगड़ता है इससे धवनेवाला वालक रोगी होता है और वच्चा पीला पडता है उसका अङ्गवल घटकर वीर्य खराव हो जाता है इतना ही नहीं परन्तु वालक न्यून वयमें मरजाता है. अपनी संतति निपल होनेका यही रोने कूटनेका हानि कारक कारण है! रोने कूटनेसे गर्भवती स्त्रीको बहोत नुकसान होता है.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy