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________________ ( १८३ ) बहोत शोक करनेसे वालक रोगी जन्मता है तथा अधुरा पड़ जाता है-श्री कल्पसूत्रकी कल्पलता नामकी टीका ___ कहा है कि ___ कामसेवा-भस्खलन पतन प्रपीडन प्रघावनाभिपात विपम शयन विपमासन-अति रागातिशोक-आदिभिर्गर्भपातो भवेव अर्थ-कामसेवासे, ठेश रगनेसे, पडनसे पीडा होनेसे, दौ. हनेसे, धका लगनेसे, वरार नहीं सोनेसे, वरापर नहीवैठनेसे अति प्रीति घतानेसे अति शोक करनेसे गर्भ पड़ जाता है पडान्से पेटमें गठान उत्पन्न होती है और उससे जवान सीका वधा तट जाता है और भर जमानीमें मरीसी दिखता है, छोरीयोंको जान वृझकर गेना कूटना सिखलाती है इस से ऐमा करनेहारे लोग जान तुझकर छोकरीयोंके शरीरमें ___ रोग पेदा करते है। शोकसे मनपर होनेवाली अमर शरीर और मनका उत्तना सम्पन्न है कि शरीरके रोगसे मन रिगहता है, गरीर अन्डा होता है तभी मन अच्छा होता है और मन अच्छा होता है तभी शरीर निरोगी रहता हे चिन्ता फरनेवाले, दसरेका मुग्य देवकर जलनेवाले, नाहर फिरर करनेवाले शरस कैसे निर्बल होते है यह पाठकों भठी भाति
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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