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________________ (१६) चाहिये कितनेक मूर्ख उसके दुखका कुच्छ न कग्ने रोना पटना गुरु करते हैं और वेर्यको छोड़ देते हैं इससे स्वर्गस्थका चित पिलाट डोलता हुआ जाता है उसकी मनोति ससारी माम माती जाती है और उसका पता जाता है बहोतसे तोगस्थ गरनेके अव्वल उसको स्नान करवाने हैं इससे उसदा जीवा बहोत पाता है स्नान कराते हैं इतनाही नहीं परन्तु माणी जीप कठमें रहता हे और उसे एक गीली (लीपीहुई) जगण मृगत है, इससे प्राण लेने वाले सबमे पहिले उसके स्नेही ही होते ह-सचगुर इनको उसके स्नेही नहीं परन्तु पन समजणा जगर उस प्राणीके शरीरमें वोडी बहोत जक्ति हो तो उत्तीत इसरे स्नेहीया ऐसे घातली कामरे लिये दीर पारे ऐसे स्नेही उसके हित चहाने वाले नहीं पाहे दुगन है गचे महीयोमा धर्म ससे अरगही होगा वो अपलो आखिरतर उसको सद्गति होय ऐसा उपाय करने है, दबावगैर से उसकी अच्छी तरह सेवा करते हैं राने पीटनका गाद उसके सनम जाने नारा देते. जबतक सरे बम प्राण रहना है वहातक उसकी पथारी बदरने नहाने रोजा वगैरकर उसरा दिल होरडोर नई माने देते उल्टे मित्रानीमे उसमा चिन निर्मर करते है ऐसे मोहोमोही उगो स्नहीं, बाकी दृारे तो नाम मान स्नेही।
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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