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________________ ( १७४ ) मरने के बाद स्मशानमें जाते वक्त दिखाव. वर्तमान समयमें मरे हुवे मनुष्यको स्मशानमे ले जाते वक्तका दिखाव सुधरी हुई प्रजाको बहोत हांसीपात्र होजाता है. घरमसे मुर्देको बहार निकाला कि उसीवक्त बीयें धडा घड कटती हुई लम्बे अवाजसे रोती हैं और शरीरका किसी प्रकार भान न रखते सुसरे भरतारकी लानको मदेश रख देती हैं. पुरुषभी रोने कूटनेमें कोइ वाकी रखते नही और वम मारकर इस प्रकार जोरसे रोते हैं कि उत्तम विचार वाले सद्गृहस्थ उसका रोना देखकर हंसते हैं. कोई तो कमरको हाथ लगा कर ऐसे चिल्लाते हैं कि उस वक्त उसकी आकृति डरावनी होजाती है. वहोत वूम देवाजारमें रोनेसे मरे हुए प्राणी का चित्त भंग होता है. जरासा उंडा विचार करके देखा जावे तो मालुम होता है कि मरे हुओ मनुष्यके पीछे जाने वाला समुदाय यह एक शोकराजाकी वरात है. वरानमें मनुष्यको रीतिसर चलना चाहिये. गम्भीरता बताना चाहिये, उस बदले में उल्टे दूसरे लोग मशकरी करते हैं. दुनियाका स्वाभाविक नियम है कि मुर्देको देखकर मनुप्यके दिलमें वैराग रस प्रगटे तो ऐसे मौकेपर लोगोंको ऐसी रीतसे वर्तना चाहिये कि उसके वर्तावसे दूसरे लोगों के दिलमें वैराग्य पैदा हो. वैसा न करते हालकी वक्त में अलग वर्ताव होता है. कितनेक तो मात्र दूसरोंको बतानेके लिये ढोंग करके रोते हैं.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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