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________________ ( १७२) क्यों बुलाया? इसी मुताविक मनुष्य से मरने वाद अनिलय रोना कुटना यहभी यूर्खलाड़ी है. अपने रोने कूटनेरौ मराहुआ पीछा आता नहीं. प्राणीमात्र अपनी जानुपूर्ण होने से याने दे बैतेही अपनभी अपनी आयुके अंतसे मरंग. ऐसे देनाधीन कार्यमें अतिशय रोना कुटना ये धीरजकी खाली बतलान है और पीना धीरजके मनुष्यसे होई बड़ा झार्य पार पहला नहीं यह तो सय कोई जानने हैं. ___ अनिलय रोने कटनेसे क्या २ गैरझायदे हैं उसका वर्णन करनेके पहिले-मनुप्यके मरनेक अन्बल उपके लागे सोई और मित्रोंकी क्या फर्म है यह बताने की आवश्यकता है __ अंतकाल समय सगे व स्नेहीयोंका धर्म अकस्मात मृत्युसे मनुष्य मात्र निरुपाय है ( और इसी लिग शाहकारोंने कहाभी है कि हिलते चलते हरएका काम करते मनुष्यको अपना चित्त बहोतही निर्मल रखना ) इससे जब कोई मनुष्य थोड़े दिनतक बीमारीयां भुगतार बरता है कि उसवाले उसके सगे सोइ मित्र इत्यादिका कर्तव्य है कि उसकी दवा वगैरः करें और उसकी चाकरी करना चाहिये उसका ध्यान दुष्ट ध्यान तर्फ नहीं जाने देना. धर्मकया वीरः चालु रखकर उसका दिल निर्मल रखना, आड़ी टेडी बातें न करना
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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