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________________ म ( १७० ) दूसरोंको अति स्नेह बतानेके लिये रूढी तरीकेसे करते हैं___शोक करना, रोना कृटना, इसके शब्दार्य और स्वरूप बताने के पीछे इन प्रतिओस क्या क्या बुरे फल, होते हैं इ. सका अब विचार कीजिये. दोप विवेचन आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लथ्यान, इन चार ध्यानों मेंसे आत्तध्यान मेंही शोक, रुदन, वगेरे प्रहनियों रही हुई हैं ऐसा श्री चतुर्दश पुर्वधर भगवान श्री भद्रबाहु रवामीनीने आवश्यक नियुक्तिके ध्यान शतकमे कहा हुआ है. तस्लय कंदणसोयण परिदेवणताडणांई लिगाई. इणिविओगा विओग वेअण निमित्ताइ १५ अर्थ-यह ध्यानके आक्रंदन. शोक, सदन, और ऋटना ये लिंग हैं और यह लिंग इप्ट ( अच्छी ) वस्तुका वियोग अनिष्ट ( खराब ) वस्तुका संयोग और वेदना इन तीन हेतुओस होता है. और आध्यान ये तिर्यच गतिका चूल है. कहा है कि. अदममाणं संसार वढणं तिरिय गई मूलं. याने आर्त ध्यानसे जीवको कुच्छ भी लाभ नहीं मिल
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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