SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १६२ ) मृत्यु पीछे नुकता करनेका रिवाज कोई २ ठिकाने रुपान्तर भया हुवा देखनेमें आता है, मृत्यु के बाद उसका कारज तुरत न करे तो वादमें उस निमित्तसें संघ या और कोई नामसे जीमनवार करने में आताहै; परन्तु दीर्घ दृष्टिसे विचार करनेसे मरनेहारेके पीछे संघ या और कोई नामसे जीमन किरना यहभी निषेधही है, साधर्मि भाईयोंको भोजन खिलाना हो तो इसरे कई प्रसंग मिलते हैं, परन्तु जहाँपर मृत्यु और जीगन इन दोनों शब्दोकी घटना होही नही सक्ती वहां मृत्युके पीछे भोजन कैसा शोभे ? वास्ते मृत्यु पीछे संघ या नौकारसीके नामसे भोजन न करते उसमें जितने रुपै खर्च हो उतने रुपै दुःखीपडे हुवे स्थितिके जातिबन्धु या धर्मवन्धुकी सहायतामें लगाकर उच्च स्थिति पर लानेके काममें तथा निर्धनताके कारण विद्योन्नति करनेमें अटके हुओ वालको विद्योन्नति करानेके काममें खर्चकर उसका सद उपयोग करनेमें आवे तो जैन कोम जो अधम स्थितिको पहुंचती जाती है उससे बचे ' और जैन कोमको लक्ष्मीने वरा है, यह प्राचीन कहनावत अज्ञान रूपीगाढ निद्रा वश नाश पाई है, वह फिर जन्म धारन करेगी। शास्त्रविरुद्ध और सांसारिक अधम स्थितिका मूल बहुत समयसे जड जमाकर बैठनेवाला मृत्युके बाद जीमनवार करना ऐसे दुष्ट रिवाजोंको जडमूलसे नाश करनमें अपना श्रेय है यह
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy