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________________ ( १२१) वहासे उठानका बहुतकुछ प्रयत्न किया किन्तु आचर्य श्रीके चरणोंको त्यागना आपने ठिकुल नहीचहा । यह आचार्य जना दृश्य देखकर आपके माता पिताने और सुराणेजीने आचार्यजीस यह गिनती की, कि, इस घालाकि भक्ति-एव प्रीति-आपहीपर अधिक विदितहो रही है अतएव हम लोगोंकाभी अत करण इस समय यही कहरहा है कि, इस बालकको हमेशाहके लिये आपको सेवाम अर्पण करदेना । आचा यजीनेभी उत्तम लक्षणयुक्त बालकको देख इसमातका लोकार कररिया और उपाश्रयको लेकर आये । चरितनायक पियाके पडेही अनुरागीथे, एकबार देखने परहीसे आपसे लोर-काव्य-कठहोजाताथा-पढाहुआ भूल जानातो आप स्वप्नमेंभी नही जानतेथे किसीभी विषयका किसीभी स्थलका-प्रमाण आपसे किसीभी समय क्यों ! न पूछलियाजाय, झट कहदेतथे आपकी स्मरणशक्ति ऐसी परलथीकी पृष्ट-पदिक्त तकभी आप नहीं भूलतेथे ब्रह्मचर्य प्रत मेंतो आप इतने दृढथेकि म्पप्नमेंभी कभी विषय भोगकी इच्छा नहीकी । वर्तमानके ब्रह्मचारीयोंमें आपमा प्रधानपद कहदियाजायतो कोई अत्युक्ति नहीं है । विनयगुण तो आपमें इतना भराया कि, वृद्धौंका अविनय करनातो आप जानतेभी नहीये अलाया इसके यदि कोई अन्यान्यभी सनन आपसे मिलनेको आताया तो उसके वचनोसे ऐसा शान्त और सतुष्ट करदेतेथे, कि,-उसके दयमें यही भावना उत्पन्न होजातीथी कि, ऐसे
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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