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________________ ( ११४ ) आग मिलतीहै तो उस्की थोडीसी ठंड दूर होजाती है मतलव अग्निकी मंदता होनेपर सर्वथा शरदी नहीं उड सक्ती मगर कुच्छ आराम जरूर हो जाताहै अगर अच्छी तरहसे आग मिल जाती है तो इस्की तमाम शरदी दूर होजाती है तो इससे हम कह सक्ते हैं कि अल्प सामग्रीके सद्भावमें जिस्का कुच्छ नाश होताहै तो संपूर्ण सामग्रीके सद्भावमें उस्का निर्मूल नाश भी जरूर होना चाहिये. वाद आपने कहा थाकि जो अनादि है उस्का नाश नहीं होता यह भी आपका कहना ठीक नहीं है, क्योंकि प्रागभाव अनादि है मगर फिर भी इसका नाश निर्विवाद स्वीकारा जाताहै और आपका हेतु स्वर्ण गृत्तिकाके संयोगमें अनेकान्निकभीहै चुंके स्वर्ण और मट्टीका संयोग अनादिहै मगर सामग्रीद्वारा मृत्तिकासे अलादा होसक्ता है, इसी तरह तपआदि सामग्रीसे रागद्वेप रुपमृत्तिकाके दुरहो जाने से आत्ततत्व रुपस्वर्ण बखूबी साफ होसक्ताहै; अनादिकी चीजका नाश नहीं होता इस मजमूनपर मैंने बहोत कुच्छ लिखनाया मगर इस वक्त अल्प समय होनेसे मैं लिख नहीं सक्ता विशेधार्थी पुरुषोंको नंदीमूत्रकी पीठिका देख लेनीः वहांपर अपचयके वारेमें ज्ञानावरणीकी मिसाल देकर व्यभिचार दिखला कर वादीने खूब जोर लगायाहै तथा आत्माका रागादिसे भिन्नत्वाभिन्नत्वपर अच्छा विचार कियाहै, आचार्य महाराजने खूव युक्ति प्रयुक्तिद्वारा वादीको फटकाराहै देख लेवें ? मित्र
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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