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________________ गणो । मचकुरा मोक्षपदमें मजाकी कोइ इन्तहा नहींहै क्योंकि चहापर हमारा आत्मा जम जरा मरण रोग सोग वगैरा सव उपाधियोंसे अपाय रहताहै, देखिये योगशास्त्रके कर्ता हेगचद्रमरि योगशास्त्रमें मोक्षरा फितना सुख श्यान करतेहै ? देखनेसे साफ मालूम होजायगा किह दो हिसारसे वहारह चे फरमाते है। सुरासुर नरेन्द्राणां यत्सुख भुवनत्रये। तत्स्यादनन्त भागेपि नमोक्ष सुखसपद ॥१॥ स्वस्वभार जमत्यक्ष यस्मिन् वै शास्वत सुख । चतुर्वर्गाग्रणीवेन ते न मोक्ष प्रकीर्तित ॥२॥ भावार्थ-गुरासुर नरेन्द्रोंको इस दुनियाम जितना सुख है वो तमामका तमाम मिसरभी मोल मुखके अनन्तम हिस्से नहीं होसक्ता ॥ ॥ मोक्षमें स्वाभाविक अतींद्रिय (इद्रियोद्वारा न देग्वा जासके) और शाश्वत (हमेशह कायम ) सृग्य होते है इस लिये चार पुरपार्थों में मोक्षको अवल दर्जा दिया गया ॥२॥ इति उपादेय मोक्ष तव ॥ ॥
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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