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________________ पदीय दादागिर, नाम (१००) दि पदार्थों को हम कैसे जान सके ... . . लेखक-अब आप जरा अपना ध्यान दीजिये ! और मेरेसे जवाध लीजिये ! प्रिय मित्र वरो! ऐसा कभी अपने दिलमें नहीं लानाफि जिस पदार्थको हम नहीं देख सक्त वो शश (खरगोष) के झंगकी तरह सर्वथा नहीं होना क्योंकि इसदुनियामे दो तरहकी अनुपलब्धि (पदार्थके नहीं देखे जानेकी किस्में) होती हैं एकतो सर्वथा पदार्थको न होनेसे पदार्थकी अनुपलब्धि होती है जैसे गर्धम शृंग अथवा अन्वग ( गधेव घोडेके झंग) येह पदार्थ नहीं है इसलिये नहीं देखे जाते । दुसरी अनुपलब्धि (पदार्थका नहीं गालग होना) पदार्थके होनेपरभी हो जाती है. इस अनुपलब्धिके जाट भेद हैं (अर्थात् पदार्थ के होनेपरभी आठ सवयसे पदार्थ नहीं जाने जाते ) पदार्थक बहोत दूर होने के सववसे ॥१॥ या बहोत नजदीक होनेसे ॥२॥ इंद्रिय जानके नष्ट हो जानेसे ॥३॥ मनके अनवरुण होनेसे ॥४॥ अतिसूक्ष्म होनेकी वजहसे ॥५॥ आव- रण (ढका जाना )से ॥६॥ अभिभव (एककी प्रबलतासे दुसरेका दखजाना)से ||७|| समानाभिहार (बराबर) मिल जाना से ॥८॥ देखिये इन आठोंकी अब अनुक्रनसे मिसालें दिइ जाती हैं. प्रथम अनुपलब्धिके तीन भेद हैं एक देशविन कर्ष (दुरकी चीजका न देखा जाना) दुसरा कालविमकर्ण
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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