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________________ दायकी रूसे स्निग्ध-रुस शीत भौर उष्ण यह चारों सर्श होते हैं मगर एक परमाणुकी बनिष्यत इनमेंसे दोहि होते हैं पातो स्निग्र और उष्ण होगे या स्निग्ध और शीत होगें या रूस और शीत होगें या रूक्ष ओर ऊप्ण होगें. और दयणुकसे लगाकर महास्कन्ध तक गितने जद कार्य है सबका यह हेतु है इन छी द्रव्योम धर्मा धर्म आकाश और काल येह चार द्रव्य एक कहलाते है और जीव तथा पुद्गल यह दो अनेक द्रव्य कहलाते हैं इन छी द्रव्योमें पुद्गलको छोडकर पांच द्रव्य अमृत कहलाते हैं और पुद्गल मूर्च है। पाठक गण-आपकी हमारेपर घढी कृपा है जो इसकदर तत्त्वज्ञानको तालीम दे रहे हों मगर इनमें एक शक रहता है अगर आप इजाजत देवें तो मैं अपने दिलकी तसल्ली फरल' लेखक-शा आप अपनी तसल्ली फरले लेखकसरी तरफसे आपको सुल्ली इजाजत है। जो पूच्छना चाहे सोपूछ सक्ते हैं। क्योंकि यह रुपी है और जीव द्रव्य ययपि अस्पी है मगर उपयोग स्वसवेदन सवेद्य ( अपने अनुभद्वारा जानने योग्य) हानेसे इस्मे अस्तित्व भी हमें कोई सटेह नहीं है म. गर धर्माधर्म पायोग अतन हानेके सबसे ससपणा नहीं पाया जाता और भरुणी हानेकी पनाम नाही परसवेदन माता सरेर होसक्ता है पर पतलाये । उन धर्मा पां.
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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