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________________ (१०१) (माजी मुस्तक पीलकी चीनका नहीं देखा जाना ) तीसरा सभावविमर्प (चीजका स्वभावही नहीं दिखलाइ देनेका है) देशरिम र्प इसका नाम है जैसे समुद्रका परला फिनारा ग. धदा मेरु या अपनेहि नगरका दुसरे नगरमें गया हुआ पुरुष देखनेमें नहीं आो। इससे हम ऐसा नहा फह सक्तफि येह चीही नहीं हे फार विमर्पको मिसाल जैसे हमारे गुजरे हुए पजगाको हम नहीं देख सक्ते इससे क्या वे हुएहि नहीं धे ? और होने वाले पद्नामादि तीर्थंकरोंको इम नहीं देव सक्ते हैं तो क्या वे होवेगें नाहि ? क्यो नहीं जरुरयें । और जरुर होगें मगर कालका अन्तर होनेसेही हम देख नहीं सक्ते । सभार विमार्मकी मिसाल भूतपिशाच आत्मा आस्मान ईश्वरइन चीजाको पास आनेपरभी हम नहीं देख सक्ते इससे क्या येह चीनेही नहीं है ? चीजें तो जर है मगर इनमा सभार नहीं दिसलाद देनेका है। पतलाइये फिर हम कैसे दिख मक्ते है ? ॥१॥ पदार्थके न दिखगइ देनेका दुमरा सर चीजका बहोत नजदीक होना है मसलन नेत्राम डाग हुआ सुरमा अपने सूद टेग्यनेमें नहीं आता रसमे क्या उसीवक्त डाले हुए मुररसा नास्तित्व स्वीग जायगा ? हरगिज नहीं । यहापर यहि कहना होगाकि रहत नजदीक होनेसे हम देख नहा सके मगर अखीयेमें जरुर होना है वरना दुसरे लोग कैसे देख सक्ते ? तीसरा सम्म इद्रियोंके नष्ट
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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