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________________ ( ९६ ) येह तीनो पदार्थ चलते फिरते या स्थित हुए पुरुषों के लिये सहायक है. ऐसा नहीं समझनाकि मजकुरकामोंके नहीं चा. हने वालोपर इनकी कोइ जबरदस्ती है मसलन जो मच्छली चलना चाहती है उसीके लिये पाणी सहायक है न कि हरएकके लिये. अब चोथा द्रव्यकाल कहलाता है यह ढाइ द्वीपके अन्तवर्ति परमसूक्ष्म निर्विभाग (जिस्का हिस्सा न हो सके) एक समयात्मक होता है. इसलिये इस्के पीच्छे अस्तिकाय शब्द नहीं लगाया जाता है. यतः एक समयरूप होनसे समूहात्मक नहीं होता. देखिये ! इसीवातको प्रतिपादन करनेवाला . एक आत्तिच्चन्द सुनाया जाता है. तस्मान् मानुष्यलोक व्यापीकालोऽस्ति समयएकइहा एकत्वाश्चसकायोनभवति कायोहिसमुदायः ॥ १॥ जहाँ सूर्य चंद्रादि हमेशह घूमते रहते हैं वहाँ कालद्रव्य होता है मनुष्य लोकके वहार चंद्रसूर्यका चूमना वन्ध है तो वहाँ कालभी नहीं होता. इस द्रव्य के तीन भेद है अतीत अ नागत और वर्तमान " नटोघटः" घडेका नाश हुआ यह __ अतीतकाल कहलाता है “ सूर्यपश्यामि " मैं सूर्यको देखता हूं यह वाक्य वर्तमान कालका द्योतक है " दृष्टिभविष्यति" 'वर्षांद होगा इस वाक्यसे अनागतका स्वरूप दिखलाया है
SR No.010736
Book TitleJain Nibandh Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand J Gadiya
PublisherKasturchand J Gadiya
Publication Year1912
Total Pages355
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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