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________________ जिस समाज ने उसे प्राचार्यत्व प्रदान किया है। प्राचार्य का शरीर सुसंगठित हो, अर्थात् उसके समस्त अवयव अनुपात में हों, अनुपात-हीन शरीर मानस-विकृतियों का द्योतक होता है। सुन्दर, कोमल, सुगठित शरीर की भावनाएं भी सुन्दर, परम्पराबद्ध एव करुणा आदि कोमल भावनामों से युक्त एवं शुद्ध होती है। महापुरुषो के शरीर इसीलिए कोमल होते है। ४. वचन-सम्पदा-श्रुतजानी यदि मधुरभाषी होगा तभी उसका श्रुतज्ञान फलित हो सकता है। ग्राह्यवचन और मधुर एवं प्रभावशाली वाणी का होना प्राचार्य की सम्पदा है। प्राचार्य के प्रवचन सर्वजन-ग्राह्य हों, उसके भावों और अर्थों में गंभीरता हो, वाणी भाषा के सभी दोषों से रहित हो, संदेह-रहित एवं स्पष्ट हो ये सभी वचन-सम्पदा के ही रूप हैं। "नो हीलए नो वि अखिसइज्जा, थमं कोहं च चए स पूज्जो।" आचार्यत्व के पूज्य पद के योग्य व्यक्ति संघ के किसी भी सदस्य की निन्दा एवं भर्त्सना नहीं करता, वह क्रोध और मान के प्रभावों से सर्वदा मुक्त रहता है । जिसके हृदय को अपने बड़प्पन का आभास होने लगेगा, उसे अपने बड़प्पन की चिन्ता हो जानी भी स्वाभाविक है, यह चिन्ता ही समस्त अवगुणों का मूल है, अतः प्राचार्य वही है जो [चतुर्थ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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