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________________ प्रियता का परिचायक होता है, छोटे, खुरदरे एवं कठोर हाथ श्रमिक जीवन का संकेत करते हैं, इसी प्रकार अन्तर में जागृत क्रोध की लहर आंखों में लाली, भौहों में तनाव, मस्तक पर आड़ी रेखाएं, दांतों में कडकडाहट और हाथपैर की पटकन के रूप में व्यक्त हो उठती है। इस प्रकार के शरीर से मनोवृत्तियों का अध्ययन होता है, अत: आचार्य के लिये उस व्यक्ति को उपयुक्त समझा गया है जिसका शरीर न तो अधिक लम्बा हो और न ही अधिक ठिगना हो । प्राचार्य का शरीर युगानुरूप मर्यादा के अनुकूल लम्बाई एव ऊंचाई वाला होना चाहिए। ___ जब शरीर के अङ्ग विकृत होते हैं, बेडौन होते हैं, जब शरीर-त्वचा आवश्यकता से अधिक काली होती है, तो इस शरीर-सम्पदा के प्रभाव में प्राचार्य की प्रभावशीलता नष्ट हो जाती है। विकृत शरीर के सम्बन्ध में एक लोकोक्तिजन्य तथ्य सामने आ रहा है"सौ में शूर सहस में काना, सवा लाख में ऐंचाताना । ऐंचाताना करे पुकार, मैं आया कंजा से हार ॥" यह लोकोक्ति केवल नेव-विकृतियों से मनुष्य की हार्दिक विकृतियों के परिमाणों की अधिकता को व्यक्त कर रही है। अतः प्राचार्य का शरीर ऐसा हो जिसके कारण न तो वह स्वयं आत्म-हीनता, आत्म-ग्लानि एवं लोक-लज्जा का अनुभव कर रहा हो ही वह समाज लज्जित हो नमस्कार मन्त्र] [६५
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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