SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर सकता है और पच-परमेष्ठी के समग्र पद पांच सौ मागरोपमों के पापों को नष्ट करनेवाले हैं। जो मनुष्य श्रद्धा-भक्ति से मन को एकाग्र करके एक लाख बार महामन्त्र का स्मरण करता है या एक लाख बार चतुर्विंशति जिन-स्तुति एव वन्दन करता है वह निश्चय ही तीर्थकर नामगोत्र कर्म का उपार्जन करता है। जो मनुष्य विनय-भक्ति से महामन्त्र का जप पाठ करोड़, आठ हजार आठ सौ आठ बार करता है वह निश्चय ही मोक्ष-पद को प्राप्त करता है। चौदह पर्यों का सार फर्लो का सार जैसे इत्र होता है, वैसे ही महामन्त्र नव कार समस्त श्रुत-साहित्य का तथा चौदह पूर्व गत श्रुत ज्ञान का सार है, क्योकि ऐसा कोई आगम-शास्त्र या पूर्वगत श्रुत ज्ञान नहीं है जिसमे अनिहन्तों के गुणों का वर्णन न हो। सिद्ध परमात्मा का विवरण न हो, प्राचार्यों उपाध्यायो और साधुग्रो के गुणो का एवं उनकी वृत्तियों का उल्लेख न हो । समस्त श्रुत-साहित्य मे प्राध्यात्मिकता की प्रधानता है, वैभाविक पर्यायो से निवत्त होकर स्वाभाविक पर्याय मे अवस्थित होना ही प्राध्यात्मिकता है, वही पूर्वगत श्रुत का सार है। वर्णमाला मे जैसे स्वर और व्यंजन दो तरह १२.] [प्रथम प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy