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________________ होते हैं। दुर्गति का अवरोध और सुगति की प्राप्ति होना भी इसी का सुपरिणाम है। बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती, तीर्थङ्कर इत्यादि उत्तम पद भी इसी के जप से प्राप्त होते हैं। नव-निधान, चौदह रत्न, स्वर्ग एवं अपवर्ग का प्राप्त होना भी पच परमेष्टी जप का ही फल है। इस संदर्भ मे निम्नलिखित गाथाएं विशेष मननीय है नवकार इक्क अक्खर, पाव फोडेड सत्त अयराण । पन्नास च अयराण | सागर-पण्णसय सत्त समग्गेण । जो गुणइ लवखमेगं, पूएइ विहीहि जिन नमुक्कार । तिन्थयर - नाम - गोयं, सो बंधइ नत्थि सदेहो । अट्ठव अट्ठसया अट्ट - सहस्स च अट्ठकोडीग्रो । जो गुणइ भत्तिजुत्तो, ___ सो पावइ सासयं ठाण ॥ अर्थात् श्री नवकार मन्त्र का एक अक्षर भी इतना समर्थ है कि वह सात सागरोपम के पापों को भी नष्ट कर देता है। इस का एक पद पचास सागरोपम के पापों को नष्ट नमस्कार मन्त्र] [११
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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