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________________ के वर्ण होते हैं और उन्ही वर्गों का विस्तार उस भाषा के समस्त साहित्य में होता है अथवा यो कहिए समस्त वाङमय में जितने भी वर्ण है उन सब का सार वर्णमाला है, वैसे ही पच-परमेष्ठी के गुणों का विस्तार ही सकल वाङमय है । दूसरे शब्दों मे सकल वाङमय का सार ही नवकार है। वर्णमाला में भी व्यजन की अपेक्षा स्वर साररूप है, उनके होते हुए सारे व्य जन सार्थक है और उनके बिना व्यंजन किसी भी अर्थ के बोधक हो सकते बनते, कमोकि व्यजन के बिना स्वरों का अस्तित्व रह सकता है, किन्तु स्वर के बिना कोई भी व्यजन अर्थ का द्योतक नहीं बन पाता । अत. स्वर स्वतन्त्र है और व्यजन परतन्त्र । अत. दोनो तरह के वर्गों में स्वर साररूप है। महामन्त्र नवकार स्वर के समान समस्त शास्त्रों का सार है, इसी का सब शास्त्रों में विस्तार है और इसके जप से निश्चय ही साधक का उद्धार हो सकता है। नमस्कार मन्त्र [१३
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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