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________________ हिंसा करता है, उसकी आज्ञा के बिना ही किग करता है, किसी के प्राण किसी से पूछ कर नही लिए जाते है । (ग) किसी ग्रहीत यम-नियम को भंग करना, अकल्पनीय आहारादि का सेवन करना, गृहीत पवित्र-प्रतिज्ञाओं को तोड़ देना "तीर्थङ्कर-प्रदत्त" है । (घ) वस्तु के स्वामी द्वारा निर्दोष आहारादि दिए जाने पर भी गुरु की प्राज्ञा के बिना पिण्ड, शय्या, वस्त्र, पात्र, पुस्तक आदि किसी भी पदार्थ का उपयोग शिष्य को नहीं करना चाहिये। उपर्युक्त चारों प्रकार के प्रदत्तादान से सदा के लिए मन, वाणी और काय से न स्वयं चोरी करना, न दूसरे से चोरी कराना और चोरी करने वालों का समर्थन भी न करना "अदत्तादान-विरमण-महाव्रत" है। बड़ों की आज्ञा के बिना कोई भी कार्य किया जाए वह भी चोरी है, और तो क्या भूमि पर पड़ा हुआ तिनका, राख आदि तुच्छ वस्तु भी आवश्यकता पड़ने पर बिना उसके स्वामी की प्राज्ञा लिए नहीं उठानी चाहिये। साधु को हाथ का सुच्चा और ज़बान का सच्चा होना चाहिए। किसी वस्तुको उठाना तो दूर रहा, उठाने के लिए हाथ भी आगे नहीं बढ़ाना चाहिए । किसी के पुत्र या पुत्री को माता-पिता की आज्ञा के बिना दीक्षा भी नहीं देनी चाहिये । इस से अहिंसा की पुष्टि होती है और सत्य की भी। इस महाव्रत के बिना उक्त नमस्कार मन्त्र] [१११
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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