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________________ के परम कर्तब हैं। इस महाव्रत से पहिसा धर्म की पुष्टि होती है। इसके बिना अहिंसा धर्म निर्मूल एवं निराधार है। जिस भाषा के बोलने से प्राणियों की हिंसा हो या उन्हें घेदना की अनुभूति हो, उन्हें हानि उठानी पड़े, वह चाहे असत्य हो या सत्य, उसे बोलने की अपेक्षा मौन रहना ही उचित होता है । जैसे साधक के लिए हिंसा वजित है, वैसे ही सूक्ष्म मृषावाद भी उसके लिए वर्जित है। असत्य सभी महापुरुषों द्वारा निन्दित है। असत्यवादी का कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं करता । असत्य का सर्वथा परित्याग करना ही दूसरा महाव्रत है। ३. सर्वत: अदत्तादान-विरमण-महाव्रत-अदत्त का अर्थ है किसी के द्वारा बिना दिये हुए और पादान का अर्थ है ग्रहण करना । किसी के द्वारा बिना दिये उसकी वस्तु को ग्रहण करने का परित्याग ही नीसरा महाव्रत है। ग्राम, नगर या वन प्रादि कहीं पर भी, कोई भी किसी प्रकार का जड़, चेतन आदि पदार्थ हो, फिर वह चाहे स्वल्प हो या बहुत हो, सूक्ष्म हो या स्थूल हो, उसके स्वामी की आज्ञा के बिना लेना अदत्तादान है। इसके मुख्यत: चार भेद हैं-स्वामी, जीव, तीर्थङ्कर एवं गुरु । (क) कोई भी वस्तु उस के स्वामी के द्वारा बिना दिए ही उसका ग्रहण करना अदत्तादार है । (ख) किसी जीव के प्रागों का ग्रहण करना, अपहरण करना अदत्त है । जब कोई हिसा करता है, तब वह जिसकी [षष्ठ प्रकाश ११०]
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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