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________________ जितने भी सत्य -साध हैं, उन सब वो मेरा नमस्कार हो। सर्व, सार्व, श्रव्य और सव्य संस्कृत के इन चारों रूपो का प्राकृत भाषा में एक ही रूप बनता है, वह है सव्व । चारों को आधार मान कर उपयुक्त व्याख्या की गई है। साधु के सत्ताईस गुण मानव की मानवता जब उत्तरोत्तर सतत वृद्धि पाती हुई मानवता की चरम सीमा पर पहुंच जाती है, तभी उसमें साधुता उत्पन्न होती है। साधक साधुत्व के लक्षणों से ही वस्तुत: साधु कहलाता है। वे सत्ताईस लक्षण इस प्रकार सार्वभौम महावत जिनकी आराधना सर्वत्र और सभी कालों में समान रूप से की जाती है, उन्हे सार्वभौम महाव्रत कहते है । वे सख्या में पांच है और उनका परिचयात्मक रूप इस प्रकार है। १. सवंत:-प्राणातिपात-विरमण महाव्रत-किसी के प्राणो का लूटना, विसी को प्राणो से वियुक्त करना, उसका हनन करना, प्राणातिपात है और उससे सर्वथा विरक्त होना प्राणातिपात-विरमण है, जिसका पालन सर्व देश और सर्वकाल मे किया जाए उसे प्राणातिपात विरमणमहाव्रत कहते हैं । __ यह एक सार्वकालिक सत्य है कि अपने प्राण सभी जीवों को प्रिय है, कोई भी जीव मरना नहीं चाहता, सभी जीना नमस्कार मन्त्र] [१०७
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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