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________________ चाहते हैं, जीवन-पर्यन्त सभी जीवों की न मन से हिंसा करनी, न वचन से और न काया से हिंसा करनी । दूसरों के द्वारा भी मन-वचन और काया से हिंसा नहीं कराना तथा मन, वचन और काया से हिंसक कार्यों की अनुमोदना भी न करनी । भले ही वे जीव सूक्ष्म है या स्थूल, वस हैं या स्थावर, शत्र हैं या मित्र, धर्माभिमुख हैं या धर्म-विमुख, ज्ञानी हैं या अज्ञानी, सज्जन है या दुर्जन, सुखी हैं या दु:खी, सब प्राणियों की रक्षा करना सब तन्ह से सबका हित-चिन्तक बन कर रहना, क्षमा शील बन कर रहना, विश्वमैत्री की भावना रखना, सब का भला सोचना, प्रिय एव मधुर बोलना, भलाई करना किसी के प्रति दुर्भाव न लाना, ये सब विधि-विधान पहले महाव्रत के हैं । पहिसा के इस आदर्श सिद्धान्त को जैनेतर धर्मो ने भी "अहिंसा परमोधर्मः" कह कर महत्व दिया है। किसी जीव की भूल कर भी हिंसा न करना ही श्रेष्ठ धर्म है, कहा भी है 'ऋषयो ब्राह्मणा देवा: प्रशंसन्ति महामते ! अहिसा लक्षणो धर्मो वेद-प्रामाण्य-दर्शनात् ॥ म. भा आदि पर्व प्र.२ श्लो. ११४, अर्थात् ऋषि, ब्राह्मण और देव, इन सब का यही कहना है कि वेद की प्रामाणिकता देखने से यह सिद्ध हाता है कि जिसका लक्षण अहिंसा है, वही सर्वोच्च धर्म है। जिस धर्म में अहिंसा का महत्त्व न हो, वह वस्तुतः धर्म ही नहीं है। १०८] [षष्ठ प्रकाश
SR No.010732
Book TitleNamaskar Mantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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