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________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह २०५ भिण्ण भिंगार भुक्ख भुक्खिय (अँजिवि * जिऊण भिन्न भृगार क्षुधा हुधित अन्य, भिन्न किया गया भाजन-विशेप, झारी भूख भूखा ~ २० ॥ is is भुक्त्वा खाकर, भोगकर ५८१, २६७ ( भुत्तण भुजंग सर्प, विट (लुच्चा), जुआरी, बदमाश, गुडा ३१५ प्राणी, अतीत काल, उपमा ३५ भुयंग भूत्र भूसण भूसगदुम भूसा भेत्र गहना भूषण भूषणद्रुम भूषा २५३ भेद Mr orm ० ० ० मेय भेयण भेदन भेरी भेसज “भोत्त भोत्तण आभूषण-दाता कल्पवृक्ष-विशेष आभूपण-सज्जा प्रकार भाग छेदन वादय-विशेष औषधि भोगनेके लिए, खानेके लिए खाकर, भोगकर एकवार सेवन योग्य भोगनेवाला आहार आहार-दाता कल्पवृक्ष-विशेष ४११ २३६ भोय भोय ३६२ ३६२ मेरी भैषज्य भोक्तु भुक्त्वा भोग भोक्ता भोजन भोजनाग भोजनवृक्ष भोगभूमि भोगविरति भोक्ता भण्ड, भाण्ड भ्रंश २८१ २५१ २५६ भोयण भोयणंग भोयणरुक्ख भोयभूमि भोयविरह भोया भंड भंस २४५ २१६ सुख-मही भोग-निवृत्ति भोगनेवाला अश्लील-भाषी, पात्र, बर्तन गिरना ४०१ ५ मइ मउड मति मुकुट मद २५३ मन बुद्धि मौलि, मस्तक-भूषण गर्व, अहकार रास्ता अन्वेषण वृक्ष विशेष मार्ग ४२४ १५ ४३२ ८१ मधु मग्ग मग्गण मचकुंद मच्छिय मज्ज मज्जंग मज्झ मज्झिम मार्गणा मचकुन्द माक्षिक मद्य मद्यांग मध्य मध्यम २५२ शराब पय-द्रव्य-दाता कल्पवृक्ष-विशेष बीच मध्यवर्ती ३१५ २२१
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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