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________________ २०४ वसुनन्दि-श्रावकाचार बहु बहु ७७ ७७ बहुशः बादर द्वादश बालत्व द्वासप्तति ब्याधित २७६ १८७ बहुत, अधिक वार-वार स्थूल बारह संख्या बालपन बहत्तर पीडित छाया, मूर्ति बोनेका अन्न जानने योग्य बन्धन २६३ १८६ बिम्ब बहुसो बायर बारस, बारह बालत्तण बाहत्तरि बाहिब बिंव बीय *बोहव्व बंधण (बंधिऊण बंधित्ताबंधु बंभचेर बंभयारी ४४० बीज बोधव्य बन्धन १८१ बध्वा बाँध करके १९७ बन्धु ब्रह्मचर्य ब्रह्मचारी रिस्तेदार काम-निग्रह, शील-पालन काम-विजयी २०८ २१२ ३०४ भक्ष्य भक्षयन् भणित्वा भण्यमान भणित भक्त भक्ति १६ ३३६ ४६ भद्र भक्ख भक्खंत *भणिऊण **भणिज्जमाण भणिय भत्त भत्ति, भत्ती भद्द भमित्ता भयणिज्ज भयभीद भयविठ्ठ भरिय भविय भव्वयण भागी भावच्चण भावमह भायण भायणदुम भायणंग भारोपण भासण मिक्ख खाने योग्य खाता हुआ कह कर कहा जानेवाला कहा गया भात श्रद्धा, अनुराग कल्याण भ्रमण कर विकल्प-योग्य डरा हुआ भय-युक्त भरा हुआ मोक्ष जानेके योग्य भव्य जीव भाग्यवान् भाव-पूजन भावपूजा पात्र, बर्तन कल्पवृक्ष-विशेष कल्पवृक्ष-विशेष भारका लादना कथन भीख REE २४५ ५४३ ५३० ११० १०३ भ्रमित्वा भजनीय भयभीत भयाविष्ट भृत, भरित भव्य भव्यजन भाग्यी भावार्चन भावमह, भाजन भाजनद्रुम भाजनांग भारारोपण भाषण ५४२ ४५६ ३०३ २५५ २५१ १८१ ३२७ मिक्षा
SR No.010731
Book TitleVasunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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