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________________ नायाधम्मकहाओ प्रकार की है। विभिन्न उदाहरणों, दृष्टान्तों और लोक में प्रचलित कथाओं के द्वारा बड़े प्रभावशाली और रोचक ढंग से यहाँ संयम, तप और त्याग का प्रतिपादन किया है। ये कथायें एक-एक बात को स्पष्ट समझाकर शनैः शनैः आगे बढ़ती हैं, इसलिये पुनरावृत्ति भी काफी हुई है। किसी वस्तु अथवा प्रसंगविशेष का वर्णन करते हुए समासांत पदावलि का भी उपयोग हुआ है जो संस्कृत लेखकों की साहित्यिक छटा की याद दिलाता है। इसमें दो श्रुतस्कंध हैं। पहले श्रुतस्कंध में १६ अध्ययन हैं और दूसरे में १० वर्ग हैं । अभयदेव सूरि ने इस पर टीका लिखी है जिसे द्रोणाचार्य ने संशोधित किया है। इस अंग की विविध वाचनाओं का उल्लेख अभयदेव ने किया है। ___ पहला उत्क्षिप्त अध्ययन है । राजगृह नगर के राजा श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार राजमंत्री के पद पर आसीन था | एक बार की बात है कि रानी धारिणी गर्भवती हुई। उसने एक शुभ स्वप्न देखा जो पुत्रोत्पत्ति का सूचक था। कुछ मास व्यतीत होने पर रानी को दोहद हुआ कि वह हाथी पर सवार होकर वैभार पर्वत पर विहार करे । दोहद पूर्ण होने पर यथासमय रानी ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मेघकुमार रक्खा गया । नगर में खूब खुशियाँ मनाई गई। बालक के जातकर्म आदि संस्कार संपन्न हुए। देश-विदेश की धात्रियों की गोद में पलकर बालक बड़ा होने लगा। आठ वर्ष का होने पर उसे कलाचार्य के पास पढ़ने भेजा गया और ७२ कलाओं में वह निष्णात हो १. किमपि स्फुटीकृतमिह स्फुटेऽप्यर्थतः । सकष्टमतिदेशतो विविधवाचनातोऽपि यत् ॥ नायाधम्भकहाओ की प्रशस्ति । २.७२ कलाओं के लिये लिए देखिये समवायांग, पृष्ठ ७७ अ; ओवाइय सूत्र ४०, रायपसेणिय, सूत्र २११; जम्बुद्दीवपन्नत्ति टीका २, पृष्ट १३६ इत्यादि पंडित बेचरदास, भगवान महावीर नी धर्मः कथाओ, पृष्ठ १९३ इत्यादि ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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