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________________ द प्राकृत साहित्य का इतिहास गया । युवा होने पर अनेक राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। एक बार, श्रमण भगवान महावीर राजगृह में पधारे और गुणशिल चैत्य (गुणावा) में ठहर गये । मेघकुमार महावीर के दर्शनार्थ गया, और उनका धर्म श्रवण कर उसे प्रव्रज्या लेने की इच्छा हुई। मेघकुमार की माता ने जब यह समाचार सुना तो अचेत होकर वह पृथ्वी पर गिर पड़ी। होश में आने पर उसने मेघकुमार को निग्रंथ धर्म की कठोरता का प्रतिपादन करने वाले अनेक दृष्टांत देकर प्रव्रज्या ग्रहण करने से रोका, लेकिन मेघकुमार ने एक सुनी | आखिर माता-पिता को प्रव्रज्या ग्रहण करने की अनुमति देनी पड़ी। मेघकुमार ने पंचमुष्टि लोच किया और अब वे मुनिव्रतों का पालन करते हुए तप और संयम में अपना समय यापन करने लगे | साधु जीवन व्यतीत करते समय, कभी किसी अन्य साधु के आते-जाते हुए उन्हें हाथ-पैर सिकोड़ने पड़ते, और कभी किसी साधु का पैर उन्हें लग जाता, जिससे उनकी निद्रा में बाधा होती। यह देखकर मेघकुमार को बहुत बुरा लगा । उन्होंने अनगार धर्म छोड़कर गृहस्थ धर्म में वापिस लौट जाने की इच्छा प्रकट की। इस पर महावीर भगवान् ने मेघकुमार के पूर्वभव की कथा सुनाई जिसे सुनकर वे धर्म में स्थिर हुए । अन्त में विपुल पर्वत पर आरोहण कर मेघकुमार ने संलेखना धारणा की और भक्त-पान का त्याग कर वे कालगति को प्राप्त हुए। कथा के बीच में शयनीय, व्यायामशाला, स्नानगृह, उपस्थानशाला, वर्षाऋतु, देश-विदेश की धात्रियाँ, राजभवन, शिविका और हस्तिराज आदि के साहित्यिक भाषा में सुंदर वर्णन दिये हैं । इस प्रसंग पर मेघकुमार और उनकी माता के बीच जो संवाद हुआ, उसे सुनिये माता-नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए । तं भुजाहि ताव जाया ! विपुले माणुसस्स कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तओ पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं परिण
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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