SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ प्राकृत साहित्य का इतिहास उदायी हस्ती का उल्लेख है। अठारहवें शतक के दसवें उद्देशक में वाणिज्यग्राम के सोमिल नामक ब्राह्मण ने महावीर से प्रश्न किया कि सरसों (सरिसव) भक्ष्य है या अभक्ष्य ? महावीर ने उत्तर दिया-भक्ष्य भी है, अभक्ष्य भी। यदि सरिसव का अर्थ समान वयवाले मित्र लिया जाये तो अभक्ष्य है, और यदि धान्य लिया जाये तो भक्ष्य है। फिर आत्मा को एक रूप, दो रूप, अक्षय, अव्यय, अवस्थित, तथा अनेक, भूत, वर्तमान और भावी परिणामरूप प्रतिपादित किया है। बीसवें शतक में कर्मभूमि, अकर्मभूमि आदि तथा विद्याचारण आदि की चर्चा है। पश्चीसवें शतक के छठे उद्देशक में निग्रंथों के प्रकार बताये गये हैं । तीसवें शतक में क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी की चर्चा है। नायाधम्मकहाओ ( ज्ञातृधर्मकथा ) ज्ञातृधर्मकथा को णाहधम्मकहा अथवा णाणधम्मकहा भी कहा गया है । इसमें उदाहरणों (नाय) के साथ धर्मकथाओं (धम्मकहा) का वर्णन है, इसलिये इसे नायाधम्मकहाओ कहा जाता है । ज्ञातपुत्र महावीर की धर्मकथाओं का प्ररूपण होने से भी इस अंग को उक्त नाम से कहा है। ज्ञातृधर्मकथा जैन आगमों का एक प्राचीनतम अंग है। इसकी वर्णनशैली एक विशिष्ट अन्ये त्याहुः-मार्जारो . वायुविशेषः तदुपशमनाय कृतं संस्कृतं मार्जारकृतं (कुछ का कथन है कि मार्जार कोई वायुविशेष है, उसके उपशमन के लिये जो तैयार किया गया हो वह 'मार्जारकृत' है)। अपरे स्वाहुःमार्जारो विरालिकाभिधानो वनस्पतिविशेषस्तेन कृतं-भावितं यत्तत्तथा । किं तत् ? इत्याह कुर्कुटकमांसं बीजपूरकं कटाहम् (दूसरों के अनुसार मार्जार का अर्थ है विरालिका नाम की वनस्पति, उससे भावित बीजपूरबिजौरा)। 'आहराहि'त्ति निरवद्यत्वात् । पृ० ६९२ अ। तथा देखिये रतिलाल एम.शाह का भगवान् महावीर अने मांसाहार (पाटण, १९५९); मुनि न्यायविजयजी, भगवान महावीर नुं औषधग्रहण (पाटण, १९५९)। १. आगमोदय समिति द्वारा सन् १९१९ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy