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________________ ७६८ प्राकृत साहित्य का इतिहास लच्छी दुहिदा जामाउओ हरी तंम घरिणिआ गंगा। अमिअमिअंका असुआ अहो कुटुम्वं महोअहिणो॥ (ध्वन्या० उ० ३, पृ० ४९९) __समुद्र की लक्ष्मी कन्या है, विष्णु दामाद हैं, गंगा उसकी पत्नी है, अमृत और चन्द्रमा पुत्र हैं, समुद्र का कितना बड़ा कुटुम्ब-कबीला है ! (परिकर अलङ्कार का उदाहरण) लज्जा चत्ता सीलं च खंडिअं अजसघोसणा दिण्णा । जस्स कएणं पिअसहि ! सो च्चेअ जणो जणो जाओ। (शृङ्गार० ४३, २१३; गा० स०६, २४) जिसके कारण लज्जा त्याग दी, शील खंडित कर दिया, और अपयश मिला, हे प्रियसखि ! वही जन अब दूसरे का हो गया ! लजापजत्तपसाहणाई परभत्तिणिप्पिवासाइं। अविणअदुम्मेधाइं धण्णाण घरे कलत्ताई ॥ (साहित्य पृ० १११; दशरूपक प्र०२, पृ० ९६) भाग्यशाली व्यक्तियों के घरों की स्त्रियाँ पर्याप्त लज्जा वाली होती हैं, पर पुरुष की इच्छा वे नहीं रखतीं और विनयशील होती हैं। लहिऊण तुज्झ बाहुप्फंसं जीएं स कोवि उल्लासो। जअलच्छी तुह विरहे हूजला दुब्बला णं सा॥ (कान्य०१०, ४३४) तुम्हारी भुजाओं का स्पर्श पाकर जिसके हृदय में कभी एक अपूर्व उल्लास पैदा होता था, वह उज्वल जयलक्ष्मी तुम्हारे विरह में कितनी दुर्बल होती जा रही है ! (समासोक्ति अलङ्कार का उदाहरण ) लीलाइओ णिअसणे रक्खिउ तं राहिआइ थणवठे। हरिणो पढमसमागमसज्झसवसरेहिं वेविरो हत्थो॥ (स० के० ५, २३५) राधिका के स्तनों पर प्रथम समागम के समय भय से कम्पनशील और उसके वस्त्र पर क्रीड़ा करने वाला ऐसा कृष्ण का हाथ तेरी रक्षा करे ! लीलादादग्गुवूढ़सयलमहिमण्डलस्स चिअ अज । कीसमुणालाहरणं पि तुज्झ गुरुआइ अंगम्मि॥ (कान्या० पृ०८१, १५१) जिसने लीला से अपनी दाढ़ के अग्र भाग से समस्त पृथ्वीमंडल को ऊपर उठा लिया है ( वराह अवतार धारण करने के समय ), पेसे तुम्हारे शरीर में कमलनाल का आभरण भी क्यों भारी मालूम दे रहा है ? वजय' में पांचजन्य की उक्ति) लुलिआ गहवइधूआ दिण्णं व फलं जवेहिं सविसेसं। एहि अणिवारिअमेव गोहणं चरउ छेत्तम्मि ॥ (स० के० ५, २९९)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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