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________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७६७ का प्रतिबिंब पड़ रहा था, जिससे सुंदर रक्त कमलदल की शोभा उसके सामने फीकी पड़ गई है । ( साम्य अलङ्कार का उदाहरण) रमिऊण पइम्मि गए जाहे अवऊहि पडिनिवुत्तो। अहहं पउत्थपइअन्च तक्खणं सो पवासिव ॥ (स० कं० ५, २४२, गा० स० १, ९८) रमण करने के पश्चात् पति प्रवास को चला गया, लेकिन कुछ समय बाद आलिंगन करने के लिये वह फिर लौट कर आया। इस बीच में उसी क्षण मैं प्रोषितभर्तृका और वह प्रवासी बन गया ! राईसु चंदधवलासु ललिअमप्फालिऊण जो चावम् । एकच्छत्तं विअ कुणइ भुअणरजं विजंभंतो॥ (काव्य०प्र०४.८४) चन्द्रमा से श्वेत हुई रातों में कामदेव अपने धनुष की टंकार द्वारा सारे संसार के राज्य को मानों एकछत्र साम्राज्य बना कर विचरण करता हुआ दिखाई देने लगता है । ( अर्थशक्ति मूल ध्वनि का उदाहरण) रेहइ पिअपरिरंभणपसारिअंसुरअमन्दिरद्दारे। हेलाहलहलिअथोरथणहरं भुअलआजुअलं ॥(स.कं. ५,१६४) अपने प्रिय का आलिंगन करने के लिये फैलायी हुई, और वेग से कौतूहल को प्राप्त स्थूल स्तनभार से युक्त ( नायिका की) दोनों भुजायें सुरतमंदिर के द्वार पर शोभित हो रही हैं । (हेला का उदाहरण) रेहइ मिहिरेण णहं रसेण कव्वं सरेण जोव्वणअम् । अमएण धुणीधवओ तुमए णरणाह! भुवणमिणम् ॥ (अलङ्कार० पृ०७४) सूर्य से आकाश, रस से काव्य, कामदेव से यौवन, अमृत से समुद्र और हे नरनाथ ! तुमसे यह भुवन शोभित होता है। रंडा चण्डा दिक्खिदा धम्मदारा मजं मंसं पिजए खजए अ। भिक्खा भोजं चम्मखण्डे च सेजा कोलो धम्मो कस्स णो होइ रम्मो ॥ (दशरूपक प्र०२ पृ० १५१; कर्पूरमंजरी १, २३) जहाँ चंड रंडाएँ दीक्षित हो कर धर्मपलियाँ बनती हैं, मद्य-पान और मांसभक्षण किया जाता है, भिक्षा द्वारा भोजन प्राप्त किया जाता है, और सोने के लिये चर्म की शय्या होती है, ऐसा कौलधर्म किसे प्रिय न होगा ? रंधणकम्मणिउणिए मा जूरसु रत्तपाडलसुअन्धम् । 'मुहमारु पिअन्तो धूमाइ सिही ण पज्जलइ ॥ (स०के०५, ९१, गा०स०१,१४) रसोई बनाने में निपुण नायिका पर गुस्सा मत हो। रक्तपाटल की सुगन्धि उसके मुख की वायु का पान करके धूम वन जाती है, इसलिये आग नहीं जलती (इसलिये वह विचारी लाचार है)!
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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