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________________ अलंकार ग्रन्थों में प्राकृत पद्यों की सूची ७३५ (राजा) की शत्रुसेना ( प्रतिनायिका ), रस ( वीररस ) में पगी होने पर भी सहसा परांमुख हो गई। ( रूपक का उदाहरण ) जस्से वणो तस्सेअ वेअणा भणइ तं जणो अलिअम् । दंतक्खअं कवोले वहुए वेअणा सवन्त्तीणम् ॥ ( काव्य० प्र० १० ५३३ ) लोगों का यह कथन झूठ है कि जिसे चोट लगती है पीड़ा उसी को होती है । क्योंकि दंतक्षत तो वधू के कपोल पर दिखाई दे रहा है और पीड़ा हो रही है उसकी सौतों को । (असंगति अलंकार का उदाहरण ) जह गहिरो जह रअणणिब्भरो जह अ णिम्मलच्छाओ । तह किं विहिणा एसो सरसपाणीओ जलणिही ण किओ ॥ ( काव्य० प्र० १०, ५७३ ) विधाता ने जैसा यह समुद्र गहरा, रनों से पूर्ण तथा स्वच्छ और निर्मल बनाया है, वैसा ही मीठे पानी वाला क्यों नहीं बनाया ? ( संकर का उदाहरण ) जह जह जरापरिणओ होइ पई दुग्गओ विरूओ वि । कुलवालिआईं तह तह अहिअअरं वल्लहो होइ ॥ ( स० कं० ५, ३२९; गा० स०३, ९३ ) दरिद्र और कुरूप पति जैसे-जैसे वृद्धावस्था को प्राप्त होता जाता है, वैसे-वैसे कुलीन पत्नियों का वह अधिक प्रिय होता है । जह जह णिसा समप्पइ तह तह वेविरतरंगपडिमा पडिअं । किंकाअन्वविमूढं वेवइ हिअअं व्व उअहिणो ससिबिंबं ॥ (स० कं० ४, १८२; सेतुबंध ५, १० ) जैसे-जैसे रात बीतती है, वैसे-वैसे कंपित तरंगों में प्रतिबिंबित चन्द्रबिंब, समुद्र के हृदय की भाँति किंकर्तव्यविमूढ़ होकर मानों कांपने लगता है । ( परिकर अलंकार का उदाहरण ) जर हाउं ओइ उब्भन्तमुल्हासिअमंसुअद्धन्तम् । तह य हासि तुमं सच्छे गोलानईतूहे ॥ (स० कं० १, १६६ ) स्वच्छ गोदावरी नदी के किनारे स्नान करने के लिये अवतीर्णं तुम्हारे गीले हुए वस्त्र का अर्धभाग जब उभ्रष्ट हो जायेगा तभी समझा जायेगा कि तुमने स्नान किया है । जाइ वअणा अह्मे विजप्पिमो जाइ जप्पइ जणो वि । ताइ चिअ तेण पअप्पिआइ हिअअं सुहावेंति ॥ (शृंगार २९, १४० ) जो वचन हम बोलते हैं और जिन्हें सब बोलते हैं, वे ही यदि उसके द्वारा बोले जायें तो हृदय को सुख देते हैं ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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