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________________ ६६४ प्राकृत साहित्य का इतिहास काव्यानुशासन' और उसकी स्वोपत्रवृत्ति में शृङ्गार और नीति संबंधी ७८ प्राकृत पद्य संग्रहीन है जो गाथासप्रशती, सेतुबंध, कर्परमंजरी, रनावलि आदि से लिये गये हैं। किमी नायिका की नाजुकता पर ध्यान दीजियेसणियं वच्च किसोयरि ! पाए पयत्तेण ठवमु महिवहे। भन्जिहिसि वत्थ (१) यत्थणि विहिणा दुक्खेण निम्मविया ॥ (१.१६. २१) -हे किशोरि ! धीरे चला. अपने पैरों को बड़े हौले-हौल पृथ्वी पर रख । हे गोलाकार स्तनबाली ! नहीं तो नू गिर जायेगी, विधि ने बड़े कष्ट से तेरा सर्जन किया है। __ युद्ध के लिये प्रस्थान करते हुए नायक की मनोदशा पर दृष्टिपात कीजिये एकत्तो रुअइ पिआ अण्णत्तो समरतुरनिग्योसो। नेहेण रणरसेण य भडस्स दोलाइयं हिअअम् ।। (३.२ टीका १८७) एक ओर प्रिया रुदन कर रही है, दूसरी ओर रणभेरी बज रही है। इस प्रकार स्नेह और युद्धरस के बीच भट का हृदय दोलायमान हो रहा है। का विसमा दिव्वगई किं लटुंजं जणो गुणग्गाही। किं सुक्खं सुकलत्तं किं दुग्गेज्झ खलो लोओ॥ (६. २६. ६४०) -विषम क्या है ? देवगनि । सुंदर क्या है ? गुणग्राही जन | सुख क्या है ? अच्छी म्बी। दुर्ग्राह्य क्या है ? दुष्टजन । साहित्यदर्पण मम्मट के काव्यप्रकाश के ढाँचे पर काव्यप्रकाश की आलोचना के रूप में कविराज विश्वनाथ (ईसवी सन् की १४वीं १. रसिकलाल सी० परीख द्वारा सम्पादित, श्रीमहावीर जैन विद्यालय, बंबई द्वारा १९३८ में दो भागों में प्रकाशित । - -
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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