SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 670
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काव्यानुशासन (क) प्राकृत भाषा के श्लोक का अर्थ ( मह देसु रसं धम्मे, तमवसम् आसम् गमागमा हरणे । हरबहु ! सरणं तं चित्तमोहं अवसरउ मे सहसा ) ६६३ - हे हरवधु गौरि ! तुम्हीं एक मात्र शरण हो, प्रीति उत्पन्न करो, आवागमन के निदान इस तामसी वृत्ति का नाश करो, और मेरे चित्त का दूर करो ! धर्म में मेरी संसार में मेरी मोह शीघ्र ही ( ख ) संस्कृत भाषा के श्लोक का अर्थ ( हे उमे ! मे महदे आगमाहरणे तं सुरसन्धं समासंग अव, अवसरे (च) बहुसरणं चित्तमोहं सहसा हर ) - हे उमे ! मेरे जीवन के महोत्सवरूप आगमविद्या के उपार्जन में देवों द्वारा भी सदा अभीप्सित मेरे मनोयोग की निरन्तर रक्षा करो, और समय-समय पर प्रसरणशील चित्तमोह को शीघ्र ही हटाओ | प्रतीपालंकार का उदाहरण देखिये ए एहि दाव सुन्दरि ! कण्णं दाऊण सुणसु वअणिजम् । तुझ मुहेण किसोअरि ! चन्दो उवमिज्जइ जगेण ।। १०.५५४ - हे सुन्दरि ! हे कृशोदरि ! इधर आ, कान देकर अपनी इस निन्दा को सुन कि अब लोग तेरे मुख की उपमा चन्द्रमा से देने लगे हैं ! काव्यानुशासन मम्मट के काव्यप्रकाश के आधार पर हेमचन्द्र, विश्वनाथ और पंडितराज जगन्नाथ ने अपनी-अपनी रचनायें प्रस्तुत की हैं । सर्वप्रथम कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन की रचना की। जैसे उन्होंने व्याकरण पर शब्दानुशासन (सिद्धम) और छन्दशास्त्र पर छन्दोनुशासन लिखा, वैसे ही काव्य के ऊपर काव्यानुशासन लिखकर उसमें काव्य समीक्षा की । हेमचन्द्र के
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy