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________________ साहित्यदर्पण शताब्दी का पूर्व भाग) ने साहित्यदर्पण की रचना की'। ये उत्कलदेश के रहनेवाले थे और सुलतान अलाउद्दीन मुहम्मद खिलजी के समकालीन थे। इन्होंने राघवविलास, कंसवध, प्रभावतीपरिणय, चन्द्रकलानाटिका आदि के अतिरिक्त कुवलयाश्वचरित नाम के प्राकृत काव्य की भी रचना की थी। प्रशस्तरत्नावलि में इन्होंने १६ भाषाओं का प्रयोग किया था। बहुभाषावित् होने के कारण ही ये 'अष्टादशभाषावारविलासिनीभुजंग' नाम से प्रख्यात थे। विश्वनाथ के पिता महाकवीश्वर चन्द्रशेखर भी चौदह भापाओं के विद्वान थे । इन्होंने भापार्णव नामक ग्रन्थ में प्राकृत और संस्कृत भापाओं के लक्षणों का विवेचन किया है। साहित्यदर्पण में प्राकृत के ६४ पद्य उद्धृत हैं, इनमें से अधिकांश गाथासप्तशती से लिये गये हैं, कुछ स्वयं लेखक के हैं, कुछ रत्नावली से तथा कुछ काव्यप्रकाश, दशरूपक और ध्वन्यालोक से उद्धत हैं । कुछ अज्ञात कवियों के हैं। निम्नलिखित पद्य 'यथा मम' लिखकर उद्धृत किया गया हैपन्थिअ ! पिआसिओ विअ लच्छीअसि जासि ता किमण्णत्तो। ण मणं वि वारओ इध अस्थि घरे घणरसं पिअन्ताणं ॥ (३. १२८) -हे पथिक ! तू प्यासा मालूम होता है, तू अन्यत्र कहाँ जाता हुआ दिखाई देता है। मेरे घर में गाढ़ रस का पान करनेवालों को कोई रोक नहीं है। किसी विरहिणी की दशा देखियेभिसणीअलसअणीए निहि सव्वं सुणिञ्चल अंग । दीहो णीसासहरो एसो साहेइ जीअइ ति परं ।। (३. १६२) १. श्रीकृष्णमोहन शास्त्री द्वारा संपादित, चौखंबा संस्कृत सीरीज़ द्वारा सन् १९४७ में प्रकाशित । ___२. सातवें परिच्छेद में पृष्ठ ४९८ पर एक और गाथा 'ओवहइ उल्लहह' आदि 'यथा मम' कह कर उद्धृत है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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