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________________ ६६२ प्राकृत साहित्य का इतिहास एक उदाहरण देखियेरेहइ मिहिरेण णहं रसेण कव्वं सरेण जोव्वण्णम् । अमएण धुणीधवओ तुमए णरणाह ! भुवणमिणम् ।। (दीपकनिरूपण, पृ०७४) -चन्द्रमा से आकाश, रस से काव्य, कामदेव से यौवन और अमृत से समुद्र शोभा को प्राप्त होता है, लेकिन हे नरनाथ ! तुम से तो यह समस्त भुवन शोभित हो रहा है। आक्षेपनिरूपण का उदाहरणसुहअ ! विलम्बसु थोअंजाव इमं विरहकाअरं हिअअ । संठाविऊण भणिस्सं अहवा बोलेसु किं भणिमो । (आक्षेपनिरूपण, पृ० १४०) -हे सुभग ! जरा ठहर जाओ | विरह से कातर इस हृदय को जरा संभाल कर फिर बात करूँगी । अथवा फिर चले जाओ, बात ही क्या करूँ ? काव्यप्रकाश मम्मट (ईसवी सन् की १२वीं शताब्दी ) काश्मीर के निवासी थे और बनारस में आकर उन्होंने अध्ययन किया था। उनका काव्यप्रकाश अलंकारशाख का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिस पर अनेक-अनेक टीकायें लिखी गई हैं। काव्यप्रकाश में प्राकृत की ४६ गाथायें उद्धृत हैं। एक सखी की किसी नायिका के प्रति उक्ति देखियेपविसंती घरवार विवलिअवअणा विलोइऊण पहम् । खंधे घेत्तूण घडं हाहा णट्ठोत्ति रुअसि सहि किं ति ।। (४.६०) -हे सखि ! कंधे पर घड़ा रखे घर के दरवाजे में प्रवेश करती हुई पथ (संकेत स्थान) को देखकर तेरी आँखें उधर लग गई, फिर यदि घड़ा फूट गया तो अब रोने से क्या लाभ ? एक श्लेषोक्ति देखियेमहदे सुरसन्धम्मे तमवसमासंगमागमाहरणे। हरबहुसरणं तं चित्तमोहमवसर उमे सहसा ।। (६. ३७२)
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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