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________________ ६२७ प्राकृत में सट्टक अधिक से अधिक तीन पात्र रहते हैं,श्रृंगार रस की यहाँ प्रधानता होती है।' रामपाणिवाद राजा देवनारायण की सभा के एक विद्वान् थे और राजा का आदेश पाकर उन्होंने इस नाटक का अभिनय कराया था। लीलावती कर्नाटक के राजा की एक सुन्दर कन्या है। उसे कोई हरण न कर ले जाये इसलिये राजा उसे कुन्तल के राजा वीरपाल की रानी कलावती के पास सुरक्षित रख देता है। लेकिन वीरपाल राजकुमारी से प्रेम करने लगता है । यह देखकर कलावती को ईर्ष्या होती है । इस समय विदूषक रानी कलावती को साँप से डसवा देता है और फिर स्वयं ही उसे बचा लेता है। कलावती को आकाशवाणी सुनाई पड़ती है कि लीलावती से राजा का विवाह कर दो। अन्त में लीलावती और वीरपाल का विवाह हो जाता है। यही प्रेमकथा इस नाटक का कथानक है। प्राकृत में सट्टक भरत के नाट्यशास्त्र में सट्टक और नाटिका का उल्लेख नहीं मिलता । सर्वप्रथम भरत के नाट्यशास्त्र के टीकाकार अभिनवगुप्त (ईसवी सन् की १० वीं शताब्दी के आसपास ) ने अपनी टीका में (नाट्यशास्त्र, जिल्द २, पृ० ४०७, गायकवाड ओरिएण्टल सीरीज़, १९३४) कोहल आदि द्वारा लक्षित तोटक, सट्टक' और १. वीथ्यामेको भवेदंकः कश्चिदेकोऽत्र कल्प्यते । आकाशभाषितैरुक्तैश्चित्रां प्रत्युक्तिमाश्रितः।। सूचयेद्भरिभंगारं किंचिदन्यान् रसान् प्रति । मुखनिर्वहणे संधी अर्थप्रकृतयोऽखिलाः ॥ -साहित्यदर्पण ६, २५३-४ २. डाक्टर ए० एन० उपाध्ये डोंबी, हल्लीशक, विदूषक, (प्राकृत के विउसो अथवा विउसओ रूप से) अज्जुका, भट्टदारिका, मापं आदि शब्दों की भाँति सट्टक शब्द को भी संस्कृत का रूप नहीं स्वीकार करते। उनका कहना है कि सहक शब्द संभवतः द्राविडी भापा का शब्द है जो आट्ट शब्द से बना है जिसका अर्थ है नृत्य । शारदातनय
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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