SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८ प्राकृत साहित्य का इतिहास रासक की परिभाषा देते हुए सट्टक को नाटिका के समान बताया है। हेमचन्द्र (ईसवी सन् १०८६-१९७२) के काव्यानुशासन (पृ० ४४४) के अनुसार सट्टक की रचना एक ही भापा में होती है, नाटिका की भाँति संस्कृत और प्राकृत दोनों में नहीं। शारदातनय (ईसवी सन् १९७५-१२५०) के भावप्रकाशन (पृ. २४४, २५५, २६६) के अनुसार सट्टक नाटिका का ही एक भेद है जो नृत्य के ऊपर आधारित है। इसमें कैशिकी और भारती वृत्ति रहती हैं, रौद्ररस नहीं रहता और संधि नहीं होनी । अङ्क के स्थान पर सट्टक में यवनिकांतर होता है, तथा इसमें छादन, स्खलन, भ्रान्ति और निहनव का अभाव रहता है । साहित्यदर्पण ( ६, २७६-२७७ ) के अनुसार सट्टक पूर्णतया प्राकृत में ही होता है और अद्भुत रस की इसमें प्रधानता रहती है। कर्पूरमंजरीकार (१.६)ने सट्टक को नाटिका के समान बताया है जिसमें प्रवेश, विष्कंभ और अङ्क नहीं होते।' सड़क में अङ्कको यवनिका कहा जाता है। प्रायः किसी नायिका के नाम पर ही सट्टक का नाम रक्खा जाता है। राजशेखर ने इसे प्राकृतबंध (पाउडबंध) कहा है, नृत्य द्वारा इसका अभिनय किया जाता है (सट्टअम् णञ्चिदव्यं)। कर्पूरमंजरी प्राकृत का एक सुप्रसिद्ध सट्टक है। कर्पूरमंजरी ___ कप्पूरमंजरी, विलासवती, चंदलेहा, आनंदसुंदरी और सिंगारमंजरी इन पाँच सट्टकों में से विलासवती को छोड़कर बाकी के ने भावप्रकाशन में सट्टक को नृत्यभेदारमक बताया है । देखिये चन्दलेहा की भूमिका, पृ० २९ । १. सो सहमोति भण्णइ जो णाडिआइ अणुहरइ । किं उण पवेसविक्खंभकाई केवलं ण दीसंति ॥ कर्पूरमंजरी १.६ २. मनमोहनधोष द्वारा विद्वत्तापूर्णभूमिका सहित संपादित, युनिवर्सिटी ऑव कलकत्ता द्वारा सन् १९३९ में प्रकाशित । स्टेन कोनो की करमंजरी हार्वर्ड युनिवर्सिटी, कैम्ब्रिज से १९०१ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy