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________________ ६२६ प्राकृत साहित्य का इतिहास अद्भुतदर्पण अद्भुतदर्पण नाटक के कर्ता महादेव कवि हैं, ये दक्षिण के निवासी थे। इनके गुरु का नाम बालकृष्ण था जो नीलकण्ठ विजयचम्पू के कर्ता नीलकंठ दीक्षित के समकालीन थे । नीलकंठ विजयचम्पू की रचना सन् १६३७ में हुई थी, इसलिए महादेव कवि का समय भी इसी के आसपास मानना चाहिये । अद्भुतदर्पण के ऊपर कवि जयदेव का प्रभाव लक्षित होता है। संस्कृत का इसमें आधिक्य है। सीता, सरमा, और त्रिजटा आदि स्त्रीपात्र तथा विदूषक और महोदर आदि प्राकृत में बातचीत करते हैं। इसमें १० अंक हैं जिनमें अङ्गद द्वारा रावण के पास संदेश ले जाने से लगाकर रामचन्द्र के राज्याभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन है। राक्षसिनियाँ शूर्पणखा की भर्त्सना करती हुई कहती हैं___ अयि मूढे | अणत्थआरिणि सुप्पणहे ! भक्खणणिमित्तं तुम्हेहि मारिदा जाणइ त्ति | परिकुविदो भट्टा जीवन्तीओ एव्व अम्हे कुक्कुराणं भक्खणं कारिस्सदि । ता समरगअस्स भत्तुणो पुरदो एवं जाणईउत्तन्तं णिवेदम्ह । तदो जं होइ तं होदु।। -अयि मूढ, अनर्थकारिणि सूर्पनखे! तुमने अपने खाने के लिये जानकी को मार डाला है। भर्ता कुपित होकर जीवित अवस्था में ही हमलोगों को कुत्तों को खिलायेंगे। इसलिए चलो युद्ध में जाने के पूर्व ही भर्ता के समक्ष जानकी का समाचार निवेदन कर दें। फिर जो होना होगा सो देखेंगे । लीलावती मलयालम के सुप्रसिद्ध लेखक रामपाणिवाद की लिखी हुई यह एक वीथि है जिसकी रचना १८ वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी।' वीथि में एक ही अंक रहता है जिसमें एक, दो या १. जनरल ऑव द ट्रावनकोर यूनिवर्सिटी ओरिएण्टल मैनुस्क्रिप्ट लाईब्रेरी, ३, २.३, दावनकोर, १९४७ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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