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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास प्राकृत अंशों को संस्कृत छाया द्वारा समझाने का प्रयत्न करना पड़ा। शनैः शनैः प्राकृत भाषायें भी संस्कृत की भाँति साहित्यिक बन गयीं, और जैसे कहा जा चुका है प्राकृत के व्याकरणों का अध्ययन कर कर के विद्वान प्राकृत काव्यों की रचनाएँ करने लगे। द्रविड़देश वासी रामपाणिवाद और रुद्रदास आदि इसके उदाहरण हैं जिन्होंने वररुचि और त्रिविक्रम के प्राकृत व्याकरणों का अध्ययन कर प्राकृत के काव्य और सट्टक आदि की रचना की। अश्वघोष के नाटक अश्वघोष ( ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के आसपास ) के नाटकों में सर्वप्रथम प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है। इनके शारिपुत्रप्रकरण (अथवा शारद्वतीपुत्रप्रकरण) तथा अन्य दो अधूरे नाटक मध्य एशिया से मिले हैं।' शारिपुत्रप्रकरण नौ अंकों में समाप्त होता है। इसमें गौतम बुद्ध द्वारा मौद्गल्यायन और शारिपुत्र को बौद्धधर्म में दीक्षित किये जाने का वर्णन है। अधूरे नाटकों में एक में बुद्धि, कीर्ति और कृति' जैसे रूपात्मक पात्रों के सम्वाद हैं; बुद्धि आदि पात्र संस्कृत में वार्तालाप करते हैं। दूसरे नाटक में मगधवतीगणिका, कोमुदगन्ध विदूपक,धनंजय, राजपुत्र आदि सात पात्र हैं । लुइडर्स के कथनानुसार इन नाटकों में दुष्ट लोग मागधी, गणिका और विदूषक शौरसेनी तथा तापस अर्धमागधी में बोलते हैं। इन नाटकों में प्रयुक्त प्राकृत भापायें अशोक की शिलालेखी प्राकृत से मिलती हैं जो उत्तरकालीन प्राकृत भापाओं को समझने में बहुत सहायक हैं। भास के नाटक अश्वघोष के पश्चात् भास ( ईसवी सन् ३५० के पूर्व ) 1. लुइडर्स द्वारा सम्पादित, १९११ में यर्लिन से प्रकाशित । ये नाटक देखने में नहीं आये।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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