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________________ ५९० प्राकृत साहित्य का इतिहास और सबसे छोटे में पाँच । भाषा की दृष्टि से यह ग्रन्थ महत्त्व - पूर्ण है । उत्प्रेक्षा, उपमा और वक्रोक्तियों का यहाँ सुन्दर प्रयोग हुआ है । हरिपाल ने इस पर गौडवधसार नाम की टीका लिखी है । सर्वप्रथम ६१ पद्मों में ब्रह्मा, हरि, नृसिंह, महावराह, वामन, कूर्म, कृष्ण, बलभद्र, शिव, गौरी, गणपति, लक्ष्मी आदि देवताओं का मङ्गलाचरण है । तत्पश्चात् कवियों की प्रशंसा है | कवियों में भवभूति, भास, ज्वलनमित्र, कांतिदेव, कालिदास, सुबन्धु और हरिचन्द्र के नाम गिनाये गये हैं । सुकवि के सम्बन्ध में कहा है कि वह विद्यमान वस्तु को अविद्यमान, विद्यमान को अविद्यमान और विद्यमान को विद्यमान चित्रित कर सकता है । कवि ने प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में लिखा है - " प्राकृत भाषा नवीन अर्थ का दर्शन होता है, रचना में वह समृद्ध है और कोमलता के कारण मधुर है । समस्त भाषाओं का प्राकृत भाषा में सन्निवेश होता है; सब भापायें इसमें से प्रादुर्भूत हुई हैं, जैसे समस्त जल समुद्र में प्रविष्ट होता है, और समुद्र से ही उद्भूत होता है । इसके पढ़ने से विशेष प्रकार का हर्ष होता है, नेत्र विकसित होते हैं और मुकुलित हो जाते हैं, तथा बहिर्मुख होकर हृदय विकसित हो जाता है ।" तत्पश्चात् काव्य आरम्भ होता है। राजा यशोवर्मा एक प्रतापी राजा है जिसे हरि का अवतार बताया गया है । संसार में प्रलय होने के पश्चात् केवल यशोवर्मा ही बाकी बचा । वर्षा ऋतु समाप्त होने पर वह विजययात्रा के लिये प्रस्थान करता है । इस प्रसंग पर शरद और हेमन्त ऋतु का वर्णन किया गया है । क्रम से वह शोण नद पर पहुँचता है । उसके सैनिकों के प्रयाण से शालि के खेत नष्ट हो जाते हैं । वहाँ से वह विन्ध्य पर्वत की ओर गमन करता है और वहाँ विन्ध्यवासिनी देवी की स्तुति करता है। देवी के मन्दिर के घण्टे लगे हुए हैं, महिषासुर का मस्तक देवी के तोरण द्वार पर पगों से भिन्न
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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