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________________ Present ५८९ - युद्धभूमि में सुमटों के वक्षस्थलों का भेदन होता है, उनके हृदय का नहीं ; गिरि ( कपियों के अख - टीका ) से रथों का भेदन होता है, उत्साह का नहीं; सुभटों के शिरों का छेदन होता है, उनकी रण-अभिलाषाओं का नहीं । कामदत्ता कामदत्ता नाम के प्राकृत काव्य का चतुर्भाणी के अन्तर्गत शूद्रक विरचितपद्मप्रभृतकम् ( पृ० १२) में मिलता है । पद्मप्रभृतकम् का समय ईसवी सन् की ५वीं शताब्दी माना जाता है | sant (गौडवध ) (3) recast लौकिक चरित्र के आधार पर लिखा हुआ एक प्रबन्ध काव्य है । ' इसमें गौड देश के किसी राजा के वध का वर्णन होना चाहिये था जो केवल दो ही पद्यों में समाप्त हो जाता है । यशोवर्मा ने गौड-मगध के राजा का वध किस प्रकार किया, इत्यादि भूमिका के रूप में यह काव्य लिखा गया मालूम होता है । कदाचित् यह पूर्ण नहीं हो सका, और यदि पूर्ण हो गया है तो उपलब्ध नहीं है । बप्पइराअ अथवा वाक्पतिराज इस चरित काव्य के कर्ता माने जाते हैं । उन्होंने लगभग ७५० ईसवी में महाराष्ट्री प्राकृत में आर्या छन्द में इस ग्रन्थ की रचना की । वाक्पतिराज कन्नौज में राजा यशोवर्मा के आश्रय में रहते थे । यशोवर्मा की प्रशंसा में ही यह काव्य लिखा गया है । इसमें १२०६ गाथायें हैं । प्रन्थ का विभाजन सर्गों में न होकर कुलकों में हुआ है। सबसे बड़े कुलक में १५० पद्य हैं १. हरिपाल की टीका सहित इसे शंकर पांडुरंग पण्डित ने बम्बई संस्कृत सीरीज़ ३४ में बम्बई से १८८७ में प्रकाशित कराया । शंकरपाण्डुरंग पण्डित और नरायण बापूजी उतगीकर द्वारा सम्पादित, सन् १९२७ से भाण्डारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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