SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 600
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गउडवहो हो रहा है, पुष्प और धूप आदि सुगंधित पदार्थों से आकृष्ट होकर भ्रमर गुंजार कर रहे हैं, स्थान-स्थान पर रक्त की भेंट चढ़ाई गई है, कपालों के मण्डल बिखरे हुए हैं। मन्दिर का गर्भभवन वीरों के द्वारा वितीर्ण असिधेनु, करवाल आदि की कान्ति से शोभित है, साधक लोग तन्दुल और पुरुषों के मुण्ड से पूजा अर्चना कर रहे हैं, अरुण पताकायें फहरा रही हैं, भूतप्रतिमायें रुधिर और आसव का पान कर सन्तोष प्राप्त कर रही हैं, दीपमालायें प्रज्वलित हो रही हैं, कौल नारियाँ वध किये जाते हुए महापशु ( मनुष्य ) को प्राप्त करने के लिये एकत्रित हो रही हैं, देवी-श्मशान में साधक लोग महामांस की बिक्री कर रहे हैं। यहाँ बताया है कि मगध (गौड ) का राजा, यशोवर्मा के भय से पलायन कर गया। इस प्रसंग पर प्रीष्म और वर्षा ऋतु का वर्णन है । यहाँ पर मगधाधिप के भागे हुए सहायक राजे लौट आते हैं। यशोवर्मा की सेना के साथ उनका युद्ध होता है जिसमें मगध (गौड ) के राजा का वध होता है। इसी घटना को लेकर प्रस्तुत रचना को गौडवध कहा गया है। तत्पश्चात् यशोवर्मा ने एला से सुरभित समुद्रतट के प्रदेश में प्रयाण किया। वहाँ से वंग देश की ओर गया। यह देश हाथियों के लिये प्रसिद्ध था। उसने वंगराज को पराजित किया, फिर मलय पर्वत को पार कर दक्षिण की ओर बढ़ा, समुद्रतट पर पहुँचा जहाँ बालि ने भ्रमण किया था। फिर पारसीक जनपद में पहुँच कर वहाँ के राजा के साथ युद्ध किया | कोंकण की विजय की, वहाँ से नर्मदा के तट पर पहुँचा। फिर मरुदेश की ओर गमन किया। वहाँ से श्रीकण्ठ गया। तत्पश्चात् कुरुक्षेत्र में पहुंचकर जलक्रीडा का आनन्द लिया। वहाँ से यशोवर्मा हरिश्चन्द्र की नगरी अयोध्या के लिये रवाना हुआ। महेन्द्र पर्वत के निवासियों पर विजय प्राप्त की और वहाँ से उत्तरदिशा की ओर प्रस्थान किया | यहाँ १४६ गाथाओं के कुलक में
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy