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________________ ५८८ प्राकृत साहित्य का इतिहास उपस्थित हुए युद्ध से कातर बनी हुई युवतियों का हृदय कंपित होता है। स्त्रियों के अनुराग की अभिव्यक्ति देखियेअलअंछिवइ विलक्खो पडिसारेइ वलअं जमेइ णिअत्थम् | मोहं आलवइ सहिं दइआलोअणडिओ विलासिणीसत्थो ॥ १०.७० -विलासिनी स्त्रियाँ कहीं से अकस्मात् आये हुए अपने प्रिय को देखकर लज्जा से चञ्चल हो उठती हैं । वे अपने केशों को स्पर्श करती हैं, कड़ों को ऊपर-नीचे करती हैं, वन्त्रों को ठीक-ठाक करती हैं और अपनी सखी से झूठ-मूठ का वार्तालाप करने लगती हैं। नवोढ़ा के प्रथम समागम के संबंध में कहा हैण पिअइ दिण्णं पि मुहं ण पणामेइ अहरं ण मोएड् बला | कह वि पडिवज्जइ रअं पढमसमागमपरम्मुहो जुवइजणो॥ १०.७८ -नवोढ़ा स्त्री प्रिय द्वारा उपस्थित किये हुए मुख का पान नहीं करती, प्रिय के द्वारा याचित किये हुए अधर को नहीं झुकाती, प्रिय द्वारा अधर ओष्ठ से आकृष्ट किये जाने पर जबदस्ती से उसे नहीं छुड़ाती। इस प्रकार प्रथम समागम में लज्जा से पराङ्मुख युवतियाँ बड़े कष्टपूर्वक रति सम्पन्न करती हैं। श्रृंगाररस में वीररस की प्रधानता देखियेपिअअमकण्ठोलइअं जुअईण सुअम्मि समरसण्णाहरवे । ईसणिहं णवर भअं सुरअक्खेएण गलइ बाहाजुअलम् ॥ १२.४८ -युद्धसंनाह की भेरी की ध्वनि सुनकर, सुरत के खेद से प्रियतम के कण्ठ से अवलग्न युवतियों के बाहुपाश शिथिल हो जाते हैं। __रण की अभिलाषा का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा हैभिजइ उरो ण हिअ गिरिणा भजइ रहो ण उण उच्छाहो। छिज्जन्ति सिरणिहाणा तुंगा ण उण रणदोहला सुहडाणम् ॥ १३. ३६
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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