SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास तथा पत्ते पियपाहुणए मंगलवलयाइ विक्किणंतीए । दुग्गयघरिणीकुलबालियाए रोवाविओ गामो॥ -किसी प्रिय पाहुने के आ जाने पर उसने अपने मंगलवलय को बेच दिया। इसप्रकार कुलबालिका की दयनीय दशा देखकर सारा गाँव रो पड़ा। ___यहाँ छह ऋतुओं का वर्णन है। हाल कवि का और श्रीपर्वत से औषधि लाने का यहाँ उल्लेख है। गाथासहस्री . सकलचन्द्रगणि के शिष्य समयमुन्दरगणि इस ग्रंथ के संग्रहकर्ता हैं । वे तर्क, व्याकरण, साहित्य आदि के बहुत बड़े विद्वान् थे। विक्रम संवत् १६८६ ( ईसवी सन् १६२६ ) में उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ में लौकिक-अलौकिक विपयों का संग्रह किया है। इस ग्रन्थ पर एक टिप्पण भी है, उसके कर्ता का नाम अज्ञात है । जैसे गाथासप्तशती में ७०० गाथाओं का संग्रह है वैसे ही इस ग्रन्थ में १००० (८५५) सुभापित गाथाओं का संग्रह है। यहाँ ३६ सूरि के गुण, साधुओं के गुण, जिनकल्पिक के उपकरण, यतिदिनचर्या, २५३ आर्य देश, ध्याता का स्वरूप, प्राणायाम, ३२ प्रकार के नाटक, १६ श्रृंगार, शकुन और ज्योतिप आदि से संबंध रखनेवाले विषयों का संग्रह है। महानिशीथ व्यवहारभाष्य, पुष्पमालावृत्ति आदि के साथ-साथ महाभारत, मनुस्मृति आदि संस्कृत के ग्रन्थों से भी यहाँ उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। इनके अतिरिक्त प्राकृत में अन्य भी सुभापित ग्रन्थों की रचना हुई है। जिनेश्वरसूरि (सन् ११६५) ने गाथाकोप लिखा। लक्ष्मण की भी इसी नाम की एक कृति मिलती है। फिर, . .. जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फंड, सूरत से सन् १९४० में प्रकाशित । २. इन दोनों को मुनि पुण्यविजयजी प्रकाशित करा रहे हैं।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy