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________________ ५८५ सेतुबंध रसालय, रसाउलो ( कर्ता मुनिचन्द्र), विद्यालय, साहित्यश्लोक, और सुभाषित नाम के सुभाषित-ग्रन्थ भी प्राकृत में लिखे गये ।' सेतुबंध 0 (मुक्तक काव्य और सुभाषितों की भाँति महाकाव्य भी प्राकृत में लिखे गये जिनमें सेतुबंध, गउडवहो और लीलावई आदि का विशिष्ट स्थान है। सेतुबंध प्राकृत भाषा का सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य माना जाता है। यह महाराष्ट्री प्राकृत में लिखा गया है। रावणवध अथवा दशमुखवध नाम से भी यह कहा जाता है । महाकवि दण्डी और बाणभट्ट ने इस कृति का उल्लेख किया है। सेतुबन्ध के रचयिता महाकवि प्रवरसेन माने जाते हैं जिनका समय ईसवी सन् की पाँचवीं शताब्दी है। इस काव्य में १५ आश्वास हैं जिनमें वानरसेना के प्रस्थान से लेकर रावण के वध तक की रामकथा का वर्णन है । सेतुबन्ध की भाषा साहित्यिक प्राकृत है जिसमें समासों और अलंकारों का प्रयोग अधिक हुआ है; यमक, अनुप्रास और श्लेष की मुख्यता है। १. जैन ग्रन्थावलि, पृ० ३४१ । २. इसका एक प्राकृत संस्करण अकबर के समय में रामदास ने टीकासहित लिखा था, पर वह मूल का अर्थ ठीक-ठीक नहीं समझ पाया; पिशल, प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ २३ । सबसे पहले सन् १८४६ में सेतुबन्ध पर होएफर ने काम किया था। फिर पौल गोल्डश्मित्त ने १८७३ में 'स्पिसिमैन डेस् सेतुबंध' नामक पुस्तक गोएटिंगन से प्रकाशित की। तत्पश्चात् स्ट्रासवर्ग से सन् १८८० में जीगफ्रीड गोल्डश्मित्त ने सारा ग्रन्थ जर्मन अनुवाद सहित प्रकाशित कराया। इसी के आधार पर शिवदत्त और परब ने बम्बई से संस्करण निकाला जो रामदास की टीका के साथ काव्यमाला ४७ में सन् १८९५ में प्रकाशित हुआ; पिशल, वही, पृष्ठ २४ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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