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________________ वजालग्ग ५८३ -यदि तुम्हें जाना हो तो जाओ, इस समय आलिंगन करने से क्या लाभ ? प्रवास के लिये जाने वाले लोग यदि मृतक (निष्प्राण ) का स्पर्श करें तो यह अमंगल सूचक है । लेकिन पति चला गया, केवल उसके पदचिह्न शेष रह गये । प्रोषितभर्तृका उन्हीं को देखकर सन्तोष कर लेती है। किसी पथिक को उस मार्ग से जाते हुए देखकर वह कह उठती है - इय पंथे मा वचसु गयवइभणियं भुयं पसारे वि । पंथिय ! पियपयमुद्दा मइलिज्जइ तुझगमणेण ॥ - प्रोषितभर्तृका नारी अपनी भुजाओं को फैलाकर कहती है, पथिक ! तू इस मार्ग से मत जा । तेरे गमन से मेरे प्रियतम के पचिह्न नष्ट हो जायेंगे । पति के वियोग में प्रोषितभर्तृका विचारी कापालिनी बन गई— हत्थट्ठियं कवालं न मुयइ नूणं खणं पि खट्टगं । सातु विरहे बालय ! बाला कावालिणी जाया ॥' - अपने सिर को हाथ पर रक्खे हुए ( खप्पर हाथ में लिये हुए ), वह खाट को नहीं छोड़ती ( अथवा खट्वांग को धारण किये हुए ) ऐसी वह नायिका तेरे विरह में कापालिका बन गई है। सुगृहिणी के विषय में सुभाषित देखिये भुंजइ भुंजियसेसं सुप्पर सुप्पम्म परियणे सयले । पढमं चे विबुइ घरस्स लच्छी न मा घरिणी ॥ - जो बाकी बचा हुआ भोजन करती है, सब परिजनों के सो जाने पर स्वयं सोती है, सबसे पहले उठती है, वह गृहिणी नहीं, लक्ष्मी है । मिलाइये - / १. अब्दुर्रहमान के संदेशरासक (२.८६ ) के साथ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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