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________________ ५८० प्राकृत साहित्य का इतिहास बूझ और सूक्ष्म पर्यवीक्षण शक्ति का अनुमान किया जा सकता है। यह सुभाषित आर्या छन्द में है और इसमें धर्म, अर्थ, और काम का प्ररूपण है । वज्जा का अर्थ है पद्धति; एक प्रस्ताव में एक विषय से संबंधित अनेक गाथायें होने के कारण इसे वज्जालग्ग कहा गया है। हाल की सप्तशती की भाँति इसमें भी ७०० गाथायें थीं। वर्तमान कृति में ७६५ गाथायें हैं। दुर्भाग्य से इनके लेखकों के नामों के संबंध में हम कुछ नहीं जानते। ये गाथायें काव्य, सजन, दुर्जन, दैव, दारिद्रय, गज, सिंह, भ्रमर, सुरत, प्रेम, प्रवसित, सती, असती, ज्योतिषिक, लेखक, वैद्य, धार्मिक, यांत्रिक, वेश्या, खनक (उडू), जरा, वडवानल आदि ६५ प्रकरणों में विभक्त हैं। रत्नदेवगणि ने संवत् १३६३ में इस पर संस्कृत टीका लिखी है। कहीं-कहीं अपभ्रंश का प्रभाव दिखाई देता है। हेमचन्द्र और संदेशरासक के कर्ता अब्दु- . रहमान आदि की गाथायें भी यहाँ मिलती हैं। प्रारंभ में प्राकृत-काव्य को अमृत कहा है, जो इसे पढ़ना और सुनना नहीं जानते वे काम की वार्ता करते हुए लज्जा को प्राप्त होते हैं। प्राकृत-काव्य के संबंध में कहा है ललिए महुरक्खरए जुवईयणवल्लहे ससिंगारे । सन्ते पाइयकव्वे को सक्कइ सक्कयं पढिउं ।। -ललित, मधुर अक्षरों से युक्त, युवतियों को प्रिय, शृङ्गारयुक्त, प्राकृतकाव्य के रहते हुए संस्कृत को कौन पढ़ेगा ? नीति के सम्बन्ध में बताया है अप्पहियं कायव्वं जइ सक्का परहियं च कायव्वं । अप्पहियपरहियाणं अप्पहियं चेव कायव्वं ।। -पहले अपना हित करना चाहिये, संभव हो तो दूसरे का हित करना चाहिये । अपने और दूसरे के हित में से अपना हित ही मुख्य है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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