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________________ वज्जालग्ग ५७९ १४. असरिसचित्ते दिअरे सुद्धमणा पिअअमे विसमसीले । ____णं कहइ कुडुम्बविहडणभएण तणुआअए सोण्हा॥ काम विकार के कारण दूषित हृदयवाले देवर के होते हुए भी, शुद्ध हृदयवाली पुत्रवधू प्रियतम के कठोर स्वभावी होने से, कुटुंब में कलह होने के भय से, अपने मन की बात न कहने के कारण प्रतिदिन कृश होती जा रही है। १५. भुंजसु जं साहीणं कुत्तो लोणं कुगामरिद्धम्मि । सुहअ ! सलोणेण वि किं तेण सिणेहो जहिं णस्थि ।। -जो स्वाधीन होकर मिले उसे खाओ, छोटे-मोटे गाँव में भोजन बनाते समय लवण कहाँ से आयेगा ? हे सुन्दर ! उस लवण से भी क्या लाभ जहाँ स्नेह न हो। १६. अज्ज पि ताव एक्कं मा मं वारेहि पिअसहि रुअंतिम् | कल्लिं उण तम्मि गए जइ ण मुआ ताण से दिस्सम् ॥ -आज एक दिन के लिये मुझ रोती हुई को मत रोको | कल उसके चले जाने पर यदि मैं न मर गई तो फिर मैं रोऊँगी ही नहीं (अर्थात् उसके चले जाने पर मेरा मरण अवश्यंभावी है)। १७. जे जे गुणिणो जे जे अचाइणो जे विडड्ढविण्णाणा । दारिद्द रे विअक्खण ! ताण तुमं साणुराओ सि ॥ -जो कोई गुणवान हैं, त्यागी हैं, ज्ञानवान् हैं, हे विचक्षण दारिद्रथ ! तू उन्हीं से प्रेम करता है। - वजालग्ग ___ हाल की सप्तशती के समान वजालग्ग (व्रज्यालम) भी प्राकृत के समृद्ध साहित्य का संग्रह है। यह भी किसी एक कवि की रचना नहीं है, अनेक कवियोंकृत प्राकृत पद्यों का यह सुभाषित संग्रह है जिसे श्वेताम्बर मुनि जयवल्लभ ने संकलित किया है ।' इन सुभाषितों को पढ़कर इनके रचयिताओं की सूझ १. प्रोफेसर जुलियस लेबर द्वारा कलकत्ता से सन् १९१४, १९२३ और १९४४ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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