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________________ ५७६ प्राकृत साहित्य का इतिहास बन पड़ा है। प्रसंगवश मेघधारा, मयूरनृन्य, कमलयनलमी, झरने, तालाब, ग्राम्य जीवन, लहलहाते खेत, विन्ध्य पर्वत, नर्मदा, गोदावरी आदि प्राकृतिक दृश्यों का अनूठा वर्णन किया है। बीच-बीच में होलिका महोत्सव, मदनोत्सव, वेशभूषा, आचारविचार, व्रत-नियम, आदि के काव्यमय चित्र उपस्थित किये गये हैं। निस्सन्देह पारलौकिकता की चिंता से मुक्त प्राकृतकाव्य की यह अनमोल रचना संसार के साहित्य में बेजोड़ है। गाथासप्तशती के ऊपर १८ टीकायें लिखी जा चुकी हैं। जैन विद्वानों ने भी इस पर टीका लिखी है। जयपुर के श्री मथुरानाथ शास्त्री ने इस पर व्यंग्यसबकपा नाम की संस्कृत में पांडित्यपूर्ण टीका लिखी है। गाथाशप्तशती की चमत्कारपूर्ण उक्तियों के कुछ उदाहरण देखिए १. फुरिए वामच्छि तुए जइ एहिइ सो पिओ ज ता सुइरम् । __ संमीलिअ दाहिण तुइ अवि एवं पलोइस्सम् ।। -हे वामनेत्र! तेरे फरकने पर (परदेश गया हुआ) मेरा प्रिय यदि आज आ जायेगा तो अपना दाहिना नेत्र मूंदकर मैं तेरे द्वारा ही उसे देखूगी।' . २. अन्ज गओ ति अज्जंगओ त्ति अज्जंगओ त्ति गणरीए । पढम विअ दिअहद्धे कुडो रेहाहिं चित्तलिओ।। -( मेरा पति) आज गया है, आज गया है, इस प्रकार एक दिन में एक लकीर खींचकर दिन गिननेवाली नायिका ने दिन के प्रथमार्ध में ही दिवाल रेखाओं से चित्रित कर डाली। ३. जस्स अहं विअ पढमं तिस्सा अंगम्मि णिवडिआ दिट्ठी। तस्स तहिं चेअ ठिआ सव्वंग केण वि ण दिलं॥ 1. मिलाइये-बाम बाहु फरकत मिलें, जो हरि जीवनमूरि । तो तोही सो भेटिहों, राखि दाहिनी दूरि ॥ १४२ बिहारीसतसई।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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